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________________ जड़त्व को धारण करने स जो मत्ति-मन्द मदान्ध बने हैं। यद्यपि इनका नाम पयाधर भी है, নয়ায়ি विष ही वर्षाते हैं वर्षा-ऋतु में थे। अन्यथा, भ्रमर-सम काले क्यों हैं ? यह बात निराली है कि वसुधा का समागम होते ही 'विष' सुधा बन जाता है और यह भी एक शंका होती है, कि वर्या-क्रतु के अनन्तर शरद-ऋतु में हारक-सम शुक्र क्यों होते' : उपाय की उपस्थिति ही पर्याप्त नहीं है. उपादेय की प्राप्ति के लिए अपाय की अनुपस्थिति भी अनिवार्य है। और वह अनायास नहीं, प्रयास-साध्य है। इस कार्य-कारण की व्यवस्था को स्मरण में रखते हुए ही सर्व-प्रथम वह बादल-दल दखते-देखते पलभर में अपने पथ में वाधक बने प्रभाकर से जा भिड़ते हैं और धन घमण्ड-चुल 230 :: मृक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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