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________________ कूट-ऋट कर सागर में कृट-नीति 'भरी है। पुनः प्रारम्भ होता है पुरुषार्ध । पृथिवी पर प्रलय करना प्रमुख लक्ष्य है ना ! इसीलिए इस बार पुरुष को प्रशिक्षित किया है प्रचुर - प्रभूत समय 2 कर। और यह पुरुष हैं-- 'तीन घन-बादल बदलियाँ नहीं दल-बदलने वाली झट-सदया से पिघलनमाली ..... : .:::: शुभ-कार्यों में विधन डालना ही इनका प्रमुख कार्य रहा है। इनका जघन परिणाम है, जधन ही काम : और 'घन' नाम ! सागर में से उठते-उठते क्षारपूर्ण नीर-भरे क्रम-क्रम से वायुयान-सम अपने-अपने दलों सहित आकाश में उड़ते हैं। पहला बादल इतना काला है कि जिसे देख कर अपने सहचर-साथी से बिछुड़ा भ्रमित हो भटका भ्रमर-दल, सहचर की शंका से ही मानो बार-बार इससे आ मिलता मूक पार्टी :: 227
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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