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और मुक्ता को दुर्लभ निधि ले राज-कोप को और समृद्ध करता है।
इसी भाँति । धरती की धलिम कीर्ति वह चन्द्रमा की चन्द्रिका को लजाती-सी दशों दिशाओं को चीरती हुई
और बढ़ती जा रही है सीमातीत शून्याकाश में।
सूरज-शूरों, वीरों की श्रीमानों की, धीमानों की धीरजनों की, तस्वीरों की शिशुओं की औ पशुओं की किशोर किस्मतवालों की युवा-युवति, यति-यूथों की सामन्तों की, सन्तों की शीलाभरण सतियों की परिश्रमी ऋषि-कृपकों की असि-मपि कर्मकारों की ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धों की बुद्धों की, गुणवृद्धों की तरुवरों की, गुरुबरों की परिमल पल्लव-पत्तों की गुरुतर गुल्म-गुच्छों की फल-दल कोमल फूलों की किसलय-स्निग्ध किसलयों की पर्वत-पर्व-तिथियों की
222 :: मूक माटी