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________________ और रसना, नासर यानी बसन्त के पास सर नहीं था धुद्धि नहीं थी हिताहित परखने की, यहीं कारण है कि वसन्त-सम जीवन पर सन्तों का नाऽसर पड़ता है। दाह-संस्कार का समय आ ही गया बैराग्य का वातावरण छा-सा गया जब उतारा गया वह बसन्त के सन पर से कफन'कफन कफन यहाँ गल रही है केवल तपन'तपन' "तपन": देखते ही देखते, बस दिखना बन्द हो गया, बसन्त का शव भी अतीत की गोद में समा गया वह शेष रह गया अस्थियों का अस्तित्व । और, यूँ कहती-कहती अस्थियाँ हँस रही हैं विश्व की मूढ़ता पर, कि जिसने मरण को पाया है उसे जनन को पाना है और जिसने जनन को पाया है। उसे मरण को पाना है यह अकाट्य नियम हैं ! भूक माटी :: 181
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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