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हरिता हरी वह किससे ? हरि की हरिता फिर किस काम की रही ? लचकती लतिका की मृदुता पक्व फलों की मधुता
किधर गईं सब ये ?
वह मन्द सुगन्ध पवन का बहाव, हलका-सा झोंका वह
फल-दल दोलायन कहाँ ?
फूलों की मुस्कान, पल-पल पत्रों की करतल- तालियाँ श्रुति मधुर श्राव्य मधूपजीवी अलि-दल गुंजन कहाँ ? शीत -लता की छुवन छुपी पीत-लता की पलित छवि भी
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पल भर भी पली नहीं
जली, चली गई कहाँ, पता न चला, यहाँ पल रही है केवल
तपन "तपन तपन''!
वह राग कहाँ, पराग कहाँ चेतना की वह जाग कहाँ ? वह महक नहीं, वह चहक नहीं, वह ग्राह्य नहीं, वह महक नहीं,
वह 'वि' कहाँ, वह कवि कहाँ, मंजु किरणधर यह रवि कहाँ ? वह अंग कहाँ, वह रंग कहाँ अनंग का वह व्यंग कहाँ ? चह हाव नहीं, वह भाव नहीं, चेतना की छवि छाँव नहीं,
मूकमाटी 179