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________________ अन्धो दियों करे प्रकाश की गन्ध कब मिलेगी भगवन् यूँ दीर्घ श्वास लेता शिल्पी । फिर सम्बोधन के उभरते स्वर "जो अरस का रसिक रहा है उसे रस में से रस आये कहाँ ? जो अपरस का परस करता है परस का परस क्या वह चाहेगा ? और सुरभि दुरभि से जो दूर रहा है उसकी नासा वह किस सौरभ की उपासना करेगी ? दूसरी बात यह है कि तन मिलता है तन-धारी को सुरूप या कुरूप, सुरूप वाला रूप में और निखार कुरुप वाला रूप में सुधार लाने का प्रयास करता है आभरण- आभूषणों श्रृंगारों से । परन्तु जिसे रूप की प्यास नहीं है, अरूप की आस लगी हो उसे क्या प्रयोजन जड़ शृंगारों से ! रस- रसायन की यह ललक और चखन पर - परायन की यह परख और लखन कब से चल रही है यह उपासना वासना की ? > मूक माटी : 139
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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