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पुरुष का प्रभाव पड़ा इस पर
"प्रभूत । प्रकृति का प्रभाव आप दब गया
अभूत।
लो ! रण को पीठ दिखा रहा है वीर को अवीर के रूप में रौद्र को रुग्ण-पीड़ित के रूप में
और
भय को भयभीत के रूप में
पाया । इस अद्भुत घटना से । विस्मय को बहुत विस्मय हो आया। उसके विशाल भाल में ऊपर की ओर उटती हुई लहरदार विस्मय की रेखाएँ उभरी, कुछ पलों तक विस्मय की पलकें अपलक रह गई! उसकी वाणी मूक हो आई
और
भूख मन्द हो आई। विस्मय की यह स्थिति देख कर श्रृंगार-मुख का पानी भी लगभग सूखने को है
और विषय-रसिकों की सरस कथा मयूख अन्ध हो आई !
[38 :: मुक माटी