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काया का मत सम्मान करो!
जिन चरणों में ...: मटर आली : ::
चरणाई वह पुलक आई है गुनगुना रही हैपूरा चल कर विश्राम करो।
और सुनो ! ओर-छोर कहाँ उस सत्ता की ? तीर-तट कहाँ गुरुमन्ता का ? जो कुछ है प्रस्तुत है अपार राशि की एक कणिका बिन्दु की जलांजलि सिन्धु को बह भी सिन्धु में रह कर ही।" यूँ कहती-कहती मुदिता माटी की मृदुता मौन का घूघट मुख पर लेती :
'पूरा चल कर विश्राम करो !' इस पंक्ति ने शिल्पी के चेतन को सचेत किया
और मन को मथ डाला पूरी स्फूति आई तन में जो शिधिल-श्लच हो आया था।
पूक पाटी :: 129