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आदि, आदि सूक्ष्माति-सूक्ष्म स्थान एवं समय की सूचना सूचित होती रहती है सहज ही शूलों में। अन्यथा, दिशा-सूचक यन्त्रों
और
समय-सूचक यन्त्रों-घड़ियों में
काँटे का अस्तित्व क्यों ? इस बात को भी हमें नहीं भूलना है
घन-घमण्ड से भरे हुए उद्दण्डों की उद्दण्डता दूर करने दण्ड-संहिता की व्यवस्था होती हैं, और शास्ता की शासन-शय्या फूलवती नहीं शूल-शीला हो, अन्यथा, राजसत्ता वह राजसता को सनी-राजधानी बनेगी वह!
इसीलिए तो ऐसी शिल्पी की मति-परिणति में परिवर्तन - गति वांछित है सही दिशा की ओर और क्षत-विक्षत कॉटा वह पुनः कहता हैकम-से-कम शिल्पी
14 :: मूक माटी