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जिसे
'खरा' भी अखरा है सदा
और
सतयुग तू उसे मान बुरा भी
'बूरा' - सा लगा है सदा । "
कलि काल समान हैं अदय-निलय रहा अति क्रूर होता है और सत् कलिका लता समान है अतिशय सदय रहा हैं
पुनः बीच में ही निवेदन
है. सली
कि
विषय गहन होता जा रहा है जरा सरल करो ना!
सो माँ कहती है "समझने का प्रयास करो, सतयुग हो या कलियुग बाहरी नहीं
भीतरी घटना है वह
सत् की खोज में लगी दृष्टि ही
सत-युग हैं, बेटा!
और
असत् - विषयों में डूबी
आ-पाद-कण्ठ
सत् को असत् माननेवाली दृष्टि स्वयं कलियुग है, बेटा !
बेटा !
मूक पाटी : 13