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________________ 卐चौया अधिकार卐 मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र का निरूपण * दोहा इस भवके सब दुःखनिके, कारण मिथ्या भाव। तिनकी सत्ता नाश करि, प्रगटै मोक्ष उपाय ।।१।। अब इहां संसार दुःखनिके बीजभूत मिथ्यादर्शन, निथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र है सिनका स्वरूप विशेष निरूपण कीजिए है। जैसे वैद्य है सो रोगके कारणनिका वैशेष कहै तो रोगी कुपथ्य सेवन न करै तब रोगरहित होय, तैसे इहां संसारके कारणनिका विशेष निरूपण करिए तो संसारी मिथ्यात्वादिकका सेवन न करै तब संसार रहित होय। तात मिथ्यादर्शनादिकनिका स्वरूप विशेष कहिए है मिथ्यादर्शनका स्वरूप यह जीव अनादित कर्मसम्बन्धसहित है। याकै दर्शनमोहके उदयतें भया जो अतत्त्व श्रद्धान ताका नाम मिथ्यादर्शन है। जाते तद्भाव तत्व। जो श्रद्धान करनेयोग्य अर्थ है ताका जो भाव अथावा स्वरूप ताका नाम तत्त्व है। तत्त्व नाही, ताका नाम अतत्त्व है। अर जो अतस्त्व है सो असत्य है, तातें इसीका नाम मिथ्या है। बहुरि ऐसे ही यहु है, ऐसा प्रतीति भाव ताका नाम श्रद्धान है। इहाँ श्रद्धान ही का नाम दर्शन है। यद्यपि दर्शन शब्दका अर्थ सामान्य अवलोकन है तथापि इहां प्रकरणके वशतें इस ही थातुका अर्थ श्रद्धान जानना। सो ऐसे ही सर्वार्थसिद्धि नाम सूत्रकी टीकाविषै कया है। जातें सामान्यअवलोकन संसारमोक्षको कारण होइ नाहीं। श्रद्धान ही संसार मोक्षको कारण है, ताक् संसार-मोक्षका कारणविषै दर्शनका अर्थ श्रद्धान ही जानना। बहुरि मिथ्यारूप जो दर्शन कहिए श्रद्धान ताकानाम मिथ्यादर्शन है। जैसे वस्तुका स्वरूप नाहीं तैसे मानना, जैसे है तैसे न मानना ऐसा विपरीताभिनिवेश कहिए विपरीत अभिप्राय ताको लिये मिध्यादर्शन हो इहाँ प्रश्न-जो केवलज्ञान बिना सर्व पदार्थ यथार्थ भासै नाहीं अर यथार्थ भासै बिना यथार्थ श्रद्धान न होइ; ताल मिथ्यादर्शनका त्याग कैसे बने? ताका समाधान-पदार्थनिका जानना, न जानना, अन्यथा जानना तो ज्ञानावरण के अनुसार है। बहुरि प्रतीति हो है सो जाने ही हो है, बिना जाने प्रतीति कैसे आवै? यहु तो सत्य है। परन्तु जैसे कोऊ
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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