SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक-५८ ही है। अथवा तीन प्रकार इच्छा रोग के मिटावने का किंचित् उपाय करे है, ताते किंचित् दुःख घाटि हो है, सर्व दुःखका तो नाश न होइ तातें दुःख ही है। ऐसे संसारी जीवनिकै सर्वप्रकार दुःख ही है। बहुरि यहाँ इतना जानना-तीन प्रकार इच्छानिकरि सर्वजगत पीड़ित ही है अर चौथी इच्छा तो पुण्यका उदय आए होइ सो पुण्यका बंध धर्मानुराग” होइ सो थर्मानुरागविषै जीव थोरा लागे। जीव तो बहुत पाप क्रियानिविषे ही प्रवर्ते है। ताते चौथी इच्छा कोई जीवकै कदाचित् कालविष ही हो है। बहुरि इतना जानना-जो समान इच्छावान जीवनिकी अपेक्षा तो चौथी इच्छावालाकै किछु तीन प्रकार इच्छा के घटनेते सुख कहिये है। बहुरि चौथी इच्छावालाको अपेक्षा महान् इच्छावाला चौथी इच्छा होतें भी दुःखी हो है। काहूकै बहुत विभूति है अर वाकै इच्छा बहुत है तो वह बहुत आकुलतावान है। अर जाकै थोरी विभूति है अर वाकै इच्छा थोरी है तो वह थोरा आकुलतावान है। अथवा कोऊक अनिष्ट सामग्री मिली है, ताकै उसके दूर करने की इच्छा थोरी है तो वह थोड़ा आकुलतावान है। वहुरि काहूकै इष्ट सामग्री मिली है परन्तु ताकै उनके भोगने की वा अन्य, सामग्री की इच्छा बहुत है तो वह जीव घना आकुलतावान है। तातै सुखी दुःखी होना इच्छा के अनुसार जानना; बाह्य कारणके आधीन नाहीं है। नारकी दुःखी अर देव सुखी कहिए है सो भी इच्छा ही की अपेक्षा कहिए है। तासे नारकीनिकै तीव्र कषायतै इच्छा बहुत है। देवनिकै मन्द कषायत इच्छा थोरी है। बहुरि मनुष्य तिर्यंच भी सुखी-दुःखी इच्छा ही की अपेक्षा जानने । तीन कषायतें जाकै इच्छा बहुत ताको दुःखी कहिए है। मंद कषाय जाकै इच्छा थोरी ताको सुखी कहिए है। परमार्थत दुःख ही घना वा थोरा है, सुख नाही हैं, देवादिककै भी सुख मानिए है सो श्रम ही है। उनकै चौनी इच्छाकी मुख्यता है तातै आकुलित है। या प्रकार जो इच्छा हो है सो मिथ्यात्व अज्ञान असंयमत हो है। बहुरे इच्छा है सो आकुलतामय है अर आकुलता है सो दुःख है। ऐसे सर्व संसारी जीव नाना दुःखनिकरि पीड़ित ही होइ रहे हैं। दुःख-निवृत्तिका उपाय अब जिन जीवनिको दुखत छूटना होय सो इच्छा दूर करने का उपाय करो। बहुरि इच्छा दूर तब ही होइ जब मिथ्यात्व अज्ञान असंयमका अभाव होइ अर सम्यग्दर्शनमानचारित्रकी प्राप्ति होय। तातै इस ही कार्य का उद्यम करना योग्य है। ऐसा साधन करते जेती जेती इच्छा मिटे तेता तेताही दुःख दूर होता जाय। बहुरि जब मोहके सर्वथा अभावः सर्व इच्छा का अभाव होइ तब सर्व दुःख मिटै, सांथा सुख प्रगटै। बहुरि ज्ञानावरण दर्शनावरण अन्तरायका अभाय होय तब इच्छा का कारण क्षयोपशम ज्ञानदर्शनका वा शक्तिहीनपनाया भी अभाव होय। अनंतज्ञानदर्शनवीर्यकी प्राप्ति होय। बहुरि फतेक काल पीछै अपाति कर्मनिकाभी अभाव होय, तब इच्छा के बाह्य कारण तिनका भी अभाव होय। सो मोह गए पीछे एक समय मात्र भी किछू इच्छा उपजावने को समर्थ थे नाही, मोह ही हैं कारण ये तातै कारण कहे है सो इनका भी अभाव भया तब सिद्धपदको प्राप्त हो है। तहाँ दुःखका या दुःख के कारणनिका सर्वथा अभाव होने से सदा काल अनौपम्य अखंडित सर्वोत्कृष्ट आनन्दसहित अनन्तकाल विराजमान रहे हैं। सोई दिखाइए है सिख अवस्था में दुःख के अभावकी सिद्धि ज्ञानावरण दर्शनावरणका क्षयोपशम होते वा उदय होते मोह करि एक-एक विषय देखने जानने की
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy