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________________ 卐तीसरा अधिकार) ii. संसार-अवस्था का स्वरूप-निर्देश दोहा * सो निजभाव सदा सुखद, अपनो करो प्रकाश । जो बहुविषि भवदुःखनिको, कार है सत्तानाश ।। अब इस संसार अवस्थाविष नाना प्रकार दुःख है तिनका वर्णन करिए है-जातें जो संसार-विर्ष भी सुख होय तो संसारते मुक्त होने का उपाय काहेको करिए। इस संसारविर्ष अनेक दुःख हैं, तिसहीत संसारत मुक्त होने का उपाय कीजिए है। जैसे वैद्य है सो रोग का निदान अर ताकी अवस्थाका वर्णनकरि रोगी को रोगका निश्चय कराय पीछे तिसका इलाज करनेकी रुचि करावै है तैसे इहाँ संसारका निदान वा तकी अवस्थाका वर्णनकार संसारीको संसार-रोगका निश्चय कराय अब तिनका उपाय करनेकी रुचि कराइए है। जैसे रोगी रोगते दुःखी होय रहा है परन्तु ताका मूल कारण जानै नाही, साँचा उपाय जानै नाहीं . अर दुःख भी सझा जाय नाहीं। तब आपको भासै सो ही उपाय करै तात दुःख दूरि होय नाहीं। तब तड़फि फि परवश हुवा तिन दुःखनिको सह है परन्तु ताका मूल कारण जाने नाही। याको वैध दुवक पूलकारण बताये, पुषका स्वरूप बताये, या के किए उपायनिकू झूठे दिखाये तब सांचे उपाय करने की चि होय । तसेही यह संसारी संसारते दुःखी होय रखा है परन्तु ताका मूल कारण जाने नाही अर साँचा पाय जाने नाम अर दुःख भी सका जाय नाही। तब आपको भारी सौ ही उपाय करै तातै दुःख दूर होय नाहीं। तब सफि-सफि परवश हुवा तिन दुःखनिको सहै है। दुःखों का मूल कारण याको इहाँ दुःखका मूलकारण बताइए है, अर दुःखका स्वरूप बताइए है अर तिन उपायनिकू ठे दिखाइए तो सौंपे उपाय करने की रुचि होय तातें यह वर्णन इहाँ करिये है। तहाँ सर्व दुःखनि का मूलकारण मिथ्यावर्शम, आमान अर असंयम है। जो दर्शनमोहके उदपते भया अतत्त्वश्रद्धान मिथ्यादर्शन है ताकरि वस्तुस्वरूपकी यथार्थ प्रतीति न होय सके है, अन्यथा प्रतीति हो है। बहुरि तिस मिथ्यादर्शनहीके निमित्त मायोपामरूपजान है सो अज्ञान होय रहा है। ताकरि यथार्थ यस्तुस्वरूपका जानना न हो है, अन्यथा जानना में है। बरि चारित्रमोहके उदयतें भया कषायभाव ताका नाम असंयम है ताकरि जैसे वस्तुका स्वरूप है
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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