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________________ दूसरा अधिकार संसार अवस्था का स्वरूप * दोहा मिथ्याभाव अभायतें, जो प्रगटै निजभाव। सो जयवंत रहो सदा, यह ही मोक्ष उपाय।।१।। दुःख का मूल कारण : कर्मबन्धन अब इस शास्त्रविषै मोक्षमार्ग का प्रकाश करिए है। तहां बन्धनतें छूटने का नाम मोक्ष है। सो इस आत्मा के कर्म का बन्धन है, बहुरि तिस बन्धनकरि आत्मा दुःखी होय रह्या है। बहुरि याकै दुःख दूरि करने ही का निरन्तर उपाय भी रहे है परन्तु सांचा उपाय पाए बिना दुःख दूरि होता नाहीं अर दुःख सह्या भी जाता नाही तातै यह जीव व्याकुल होय रह्या है। ऐसे जीव को समस्त दुःख का मूल कारण कर्मबन्धन है ताका अभावरूप मोक्ष है सो ही परम हित है। बहुरि याका सांचा उपाय करना सो ही कर्तव्य है तातें इस ही का याकों उपदेश दीजिए है। तहाँ जैसे वैद्य है सो रोग सहित मनुष्य को प्रथम तो रोग का निदान बतावै, ऐसे यहु रोग भया है, बहुरि उस रोग के निमित्त तैं याकै जो-जो अवस्था होती होय सो वतावे, ताकरि वाकै निश्चय होय जो मेरे ऐसे ही रोग है। बहुरि तिस रोग के दूरि करने का उपाय अनेक प्रकार बतावै अर तिस उपाय की ताको प्रतीति अनावै, इतना तो वैद्य का बतावना है। बहुरि जो वह रोगी ताका साधन करै तो रोग से मुक्त होइ अपना स्वभावरूप प्रवः सो यहु रोगी का कर्तव्य है। तैसे ही इहाँ कर्मबन्धन युक्त जीव को प्रथम तो कर्मबन्धन का निदान बताइए है, ऐसे यहु कर्मबन्धन भया है बहुरि उस कर्मबन्धन के निमित्त ते याकै जो-जो अवस्था होती है सो सो बताइए है, ताकरि जीवकै निश्चय होय जो मेरे ऐसे ही कर्मबन्धन हैं। बहुरि तिस कर्मबन्धन के दूरेि होने का उपाय अनेक प्रकार बताइए है अर तिस उपाय की याको प्रतीति अनाइये है, इतना तो शास्त्र का उपदेश है। बहुरि यह जीव ताका साधन करै तो कर्मथन्धन मुक्त होय अपना स्वभावरूप प्रवतै सो यहु जीव का कर्तव्य है। सो इहां प्रथम ही कर्मबन्धन का निदान बताइये है। कर्मबन्धन का कारण बहुरि कर्मबन्धन होते नाना उपाधिक भावनिविषे परिभ्रमणपनों पाइए है, एक रूप रहनो न हो
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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