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________________ गिनका पण्डित टोडरमलजी ने ग्रन्थ में दृष्टान्त रूप में उपयोग किया था। शास्त्रीजी ने इस सम्पादन कार्य में प्रयुक्त ९९ ग्रन्थों की जो तालिका ग्रन्थ के प्रारम्भ में दी है, उसके अवलोकन मात्र से उनके परिश्रम और अध्यवसाय का संकेत मिल जाता है। अन्य भाषाओं में अनुवाद : __पं. लालबहादुरजी शास्त्री के इसी संस्करण के आधार पर श्री धन्यकुमार गंगासा भोरे ने मोक्षमार्ग-प्रकाशक का मराठी अनुवाद तैयार किया, जो सन् १९५६ में कारंजा से प्रकाशित हुआ। यद्यपि इस प्रकाशन के पूर्व पं. कालप्पा भरमप्पा निटवे ने मराठी अनुवाद का कार्य प्रारम्भ किया पा परन्तु उसके कुछ अंश "जैन बोधक' में छपकर ही रह गये । शायद वह अनुवाद पूरा ही नहीं हुआ। सन् १९५६ में मराठी अनुवाद सामने आने तक गुजराती में भी ग्रन्थ के दो संस्करण सामने आ चुके थे। त्या के प्रताप इन् लाने गानों ने सरः साप मूल ढूंढारी में भी उसकी मांग बराबर बनी हुई थी। मूल भाषा की विश्वसनीयता एक ऐसा प्रलोभन था जिसके लिए स्वाध्यायप्रेमी कुछ कठिनाई उठाकर भी उसी भाषा में ग्रन्थ का स्वाध्याय करना सुरक्षित मानते थे। दिल्ली की 'सस्ती ग्रन्थमाला कमेटी ने उसी पचास के दशक में, ग्रन्थ का मूल ढूंढारी संस्करण प्रेमीजी के प्रकाशन के आधार पर प्रकाशित किया। इसमें मथुरा संघ के आधार पर शीर्षक आदि यथास्थान जोड़ दिये गये थे। यह संस्करण सस्ता और सुलभ होने के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ। १९६५ तक सस्ती ग्रन्थमाला चार संस्करण करके दस हजार ग्रन्थ वितरित कर चुकी थी। दिल्ली से ही श्री मुसद्दीलाल जैन चेरिटेबल ट्रस्ट ने १९८४ में एक संस्करण प्रकाशित किया। इसके पूर्व सन् १९२४ में बाबू पन्नालाल चौधरी, वाराणसी द्वारा तथा १९३६ में मुनि अनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला, बम्बई द्वारा भी एक-एक संस्करण प्रकाशित हो चुका था। बहुत बाद में दिल्ली से उर्दू में भी एक संस्करण प्रकाशित हुआ है। टोडरमल स्मारक का योगदान : ___ सुरुचिपूर्ण मुद्रण और वाजिब मूल्य पर, प्रचुर मात्रा में प्रसार की दृष्टि से मोक्षमार्ग-प्रकाशक का उल्लेखनीय प्रकाशन श्री टोडरमल स्मारक, जयपुर से हुआ है। मोटे बड़े टाइप में, अपेक्षाकृत मोटे कागज पर, अच्छी जिल्द के साथ, लागत से भी कम दामों पर इस ग्रन्थ को सबसे पहले सोनगढ़ के 'जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट' के नाम से १९६५-६६ में सामने लाया गया। पिछले तीस-बत्तीस वर्षों में जबपुर से लगभग अस्सी हजार प्रतियाँ वितरित हो चुकी हैं। यह एक सराहनीय कार्य कहा जाना चाहिए। ___ सोनगढ़ में इस ग्रन्थ को ढूंढारी भाषा से आधुनिक खड़ी बोली में जब भाषान्तरित किया गया तब इसकी प्रामाणिकता पर अनेक प्रश्न चिह्न लगाये गये थे, पर वह बात दब गई और उस समय उठाये गये प्रश्नों के आज तक कोई समाधान या स्पष्टीकरण जयपुर से नहीं दिये गये। इनका पहला संस्करण
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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