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________________ विषय शास्त्रभक्ति का अन्यथा रूप तत्त्वार्थ श्रद्धान का अयथार्थपना जीव अजीव तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप आस्रव तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप बन्ध तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप संवर तत्त्व के श्रद्धान का अन्यथा रूप निर्जरा तत्त्व के श्रद्धान की अयथार्थता मोक्षतत्त्व के श्रद्धा की अयथार्थता सम्यग्ज्ञान के अर्थसाधन में अयथार्थता सम्यकूचारित्र के अर्थसाधन में अयथार्थता द्रव्यलिंगी के थर्मसाधन में अन्यथापना द्रव्यलिंगी के अभिप्राय में अयथार्थपना सम्यक्त्व के सम्मुख मिथ्यादृष्टि का निरूपण पंचलब्धियों का स्वरूप ❤ आठवाँ अधिकार (२३१-२६१) • उपदेश का स्वरूप प्रथमानुयोग का प्रयोजन करणानुयोग का प्रयोजन चरणानुयोग का प्रयोजन द्रव्यानुयोग का प्रयोजन अनुयोगों के व्याख्यान का विधान प्रथमानुयोग में व्याख्यान का विधान करणानुयोग में व्याख्यान का विधान चरणानुयोग में व्याख्यान का विधान द्रव्यानुयोग में व्याख्यान का विधान चारों अनुयोगों में व्याख्यान की पद्धति प्रथमानुयोग में दोषकल्पना का निराकरण करणानुयोग में दोषकल्पना का निराकरण चरणानुयोग में दोष कल्पना का निराकरण द्रव्यानुयोग में दोषकल्पना का निराकरण पृ.सं. (२८) १८३ १८. ३ १८. १८४ १८६ १८६ १८८ १६२ १६४ १६६ 200 50% २१८ २२१ २३५ २३१ २३२ २३३ २३३ २३४ २३४ २३७ २४० २४५ २४७ २४६ २५० २५१ २५१ • * • विषय अपेक्षाज्ञान के अभाव में आगम में दिखाई देने वाले परस्पर विरोध का निराकरण आगमाभ्यास का उपदेश नवमा अधिकार ( २६२-२६८ ) मोक्षमार्ग का स्वरूप आत्मा का हित एक मोक्ष ही है सांसारिक सुख दुःख ही है मोक्षमार्ग का स्वरूप लक्षण और उसके दोष सम्यग्दर्शन का सच्चा लक्षण तत्त्व सात ही क्यों हैं तत्त्वार्थ श्रद्धान लक्षण में अव्याप्ति- अतिव्याप्ति असम्भव दोष का परिहार विषयसेवन के समय सम्यक्त्वी के श्रद्धान का विनाश नहीं निर्विकल्प दशा में भी तत्त्वार्थ श्रद्धान पृ.सं. દુ ૨૬ જ २६४ मोक्षसाधन में पुरुषार्थ की मुख्यता २६५ द्रव्यलिंगी के मोक्षोपयोगी पुरुषार्थ का अभाव २६७ द्रव्य और भावकर्म की परम्परा में पुरुषार्थ के न होने का खण्डन का सद्भाव सम्यक्त्व के उपाय सम्यक्त्व के भेद और उनका स्वरूप सम्यग्दर्शन के आठ अंग ܀ २६० २६८ २७० २७२ २७३ २७३ २७६ २७७ २७७ २८३ २८५ २६७ फ्र विशेषार्थ पृष्ठ सं. २, ५, ६, २०, २३, ३०, ३४,४६, ५४,५७,६८,७२, १०२, १०४, १८८, १११, १२५, १४८, १५२, १८५ १८८, १६१, २०५, २२१, २२५, २२८, २३२, २३५, २३८, २६४, २६६, २७०, २५८. २६२-२६३, २६५, २६६ । ६०, ७४१७६ १८१, १६६, मुख्य टिप्पण २०२, २३५, २७८, २५५ ।
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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