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पृ.सं.
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१०४
विषय कुल अपेक्षा गुरुपने का निषेध कुधर्म का निरूपण और उसके श्रद्धानादिक
का निषेध मिथ्या व्रत, भक्ति, तपादि का निषेध आत्मघात से पर्म का निषेध जैनधर्म में कुधर्म-प्रवृत्ति का निषेध कुधर्मसेवन से मिथ्यात्वभाव
१५४ १५५ १५६
१५६
१५१
१० ११०
११२
११२
१५f.
१४
१६०
११८
१६०
विषय • मुस्लिम मत सम्बन्धी विचार
सांख्यमत निराकरण नैयायिक मत निराकरण वैशेषिक मत निराकरण मीमांसक मत निराकरण जैमिनीय मत निराकरण बौद्धमत निराकरण चार्वाकमत निराकरण अन्यमत निराकरण उपसंहार अन्य मतों से जैन मत की तुलना अन्य मत के ग्रन्थोद्धरणों से जनमत की
प्राचीनता और समीधीनता श्वेताम्बर मत निराकरण अन्यलिंग से मुक्ति का निषेध स्त्रीमुक्ति का निषेध शूद्रमुक्ति का निषेध अछरों का निराकरण केयली के आहार-नीहार का निराकरण मुनि के यस्त्रादि उपकरणों का प्रतिषेध धर्म का अन्यथा स्वरूप इंटक मत निराकरण प्रतिमाधारी श्रायक न होने की मान्यता
का निषेध मुँहपसि का निषेध मूर्तिपूजा निषेध का निराकरण छठा अधिकार (१३७-१५८)
कुदेव, कुशुरु और कुधर्म का प्रतिषेध . . कुदेव का निरूपण और उसके श्रद्धानादिक
का निषेध सूर्य-चन्द्रमादि ग्रहपूजा प्रतिषेध गौ-सादिक की पूजा का निराकरण कुगुरु का निरूपण और उसके श्रद्धानादिक
का निषेध
१२० १२१
१६३
१२२
१६८
१२४
१६६
सातवाँ अधिकार (१५६-२३०) जैन मतानुयायी मिथ्यादृष्टि का स्वरूप केवल निश्वयनयावलम्बी जैनाभास का
निभाण आत्मा के प्रदेशों में केवलज्ञान का निषेध रागादिक के मदभाव में आत्मा को
रागरहित मानने का निषेध आत्मा को कर्म-गोकर्म से अबद्ध मानने
का निषेध अपेक्षा न समझने से मिथ्याप्रवृत्ति शारत्राभ्यास की निरर्थकता का निषेध लपश्चरण वृथा क्लेश नहीं है प्रतिज्ञा न लेने का निषेध शुभोपयोग सर्वथा हेय नहीं है स्वद्रव्य और परद्रव्य के चिन्तन से निर्जन
और बन्ध का निषेध केवल व्यवहाराबलम्बी जैनाभास का
निरूपण कुल अपेक्षा थर्म मानने का निषेध परीक्षारहित आज्ञानुसारी जैनत्व का
प्रतिषेथ आजीविकादि प्रयोजनार्थ धर्मसाधन का
प्रतिषेध जैनाभासी मिथ्यादृष्टि की धर्मसाधना अरहन्तभक्ति का अन्यथा रूप गुरुभक्ति का अन्यथा रूप
१६७ १८
१३१ १३२
१७१
१३२
१७४
१७५
१७६
१३७ १४०
१७८
१० १८१ १९२