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________________ सातवाँ अधिकार-२२५ काल गए पीछै अन्तरकरण' करै है। अनिवृत्तिकरण के काल पीछ उदय आवने योग्य ऐसे मिथ्यात्वकर्मके मुहूर्तमात्र निषेक तिनिका अभाव करै है, तिन परमाणुनिको अन्य स्थितिरूप परिणमाये है। बहुरि अन्तरकरण किये पीछै उपशमकरण करै है। विशेष : इस प्रकार है किमतरकरणं णाम? विवक्खियकम्माणं हेट्ठिमोवरिमट्टिदीओ मोत्तूण मज्झे अंतोमुत्तमेत्तीर्ण द्विदीर्ण परिणामविसेसेण गिसेगाणमभावीकरणमंतरकरणमिदि भण्णदे। (ज.प. १२/२७२ भगवद् वीरसेन स्वामों) अर्थ- अन्तरकरण किसे कहते हैं? उत्तर- विवक्षित कर्मों की अधस्तन और उपरिम स्थितियों को छोड़कर मध्य की अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितियों के निषेकों का परिणाम विशेष के कारण अभाव करने को अन्तरकरण कहते हैं (यही बात जयथवल १२/२७४ चरम पंक्ति एवं पृ. २७५, पहली-दूसरी पंक्ति तथा थयल ६/२३१, ज. प. अ. प्र. पृष्ठ ६५३, क. पा. सु. पृ. ६२६. टिप्पण, क. पा. सु. पृष्ठ ७५२ टिप्पण में लिखी है।) लब्धिसार ८६ संस्कृत टीका में भी कहा है- “तदुपर्यन्तर्मुहूर्तमात्रोऽन्तरायामः।" अर्थ- ताकै उपरि जिनि निषैकनिका अभाव किया सो अन्तर्मुहूर्त मात्र अन्तर याम है। नोट- लब्धिसार २४३ की हिन्दी टीका में भी अन्तरायाम अन्तर्मुहूर्त बताया गया है। इस प्रकार इन उक्त सकल सिद्धान्तशास्त्रों व टीकाओं के अनुसार अन्तर्मुहूर्त ही अन्तरायाम होता है। अतः "मुहूर्त मात्र निषेकनिका अभाव करै है" इस स्थल की जगह “अन्तर्मुहूर्त मात्र निषैकनिका अभाव करै है," ऐसा चाहिए। यदि कोई कहे कि मुहूर्त व अन्तर्मुहूर्त में खास फर्क नहीं पड़ता है, लगभग समान हैं; अतः अन्तर्मुहूर्त की जगह सामीप्यार्थक मुहूर्त लिखदें तो क्या आपत्ति है? तो इसका उत्तर यह है कि यहाँ समीपता कथमपि नहीं है। मुहूर्त (४८ मिनट) के अन्तरकरण काल का अन्तर्मुहूर्त से सामीप्य (लगभग समानता) भी नहीं है, जिससे कि उपचार से भी अन्तर्मुहूर्त को मुहूर्त कहदें। क्योंकि यहाँ अन्तरायाम (अन्तर्मुहूर्त) से संख्यातगुणी जो जघन्य आबाधा है वह भी अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है। १. किमन्तरकरणं णाम ? विवक्खियकम्पाणं हेट्ठिमोवरिमद्विदीओ मोत्तूण मझे अन्तोमुहूत्तमेत्ताणं द्विदीणं परिणामविसेसेण णिसेगाणामभावीकरणमन्तरकरणमिदि भण्णदे ।। __ - जय ध.अ.प. ६५३ अर्थ - अन्तरकरण का क्या स्वरूप है? उत्तर - विवक्षित को की अधस्तन और उपरिम स्थितियों को छोड़कर मध्यवर्ती अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थितियों के निषेकों का परिणाम विशेष के द्वारा अभाव करने को अन्तरकरण कहते हैं।
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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