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________________ सम्पादकीय mi मोक्षमार्ग-प्रकाशक का यह अभिनव संस्करण हिन्दी में जैन दर्शन के प्राचीन जैन माहित्य की चर्चा करें तो अनिवार्य रूप से उसमें आचार्यकल्प पंडित श्री टोडरमलजी के मोक्षमार्ग-प्रकाशक का समावेश करना ही पड़ेगा। प्राप्त ग्रन्थ नौ अधिकार प्रमाण है। नौ अधिकारों में क्रमशः १. पंचपरमेष्ठी का स्वरूप, २. संसारावस्था को स्वरूप ३. संसारदु:ख तथा मोक्षसुख, ४. मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्र, ५. विविध मत समीक्षा ६. असत्यायतनों का स्वरूप, ७. जैन मिथ्यादृष्टि का विवेचन ८, आगम का स्वरूप तथा ९. मोक्षमार्ग का स्वरूप वर्णित है। यद्यपि ग्रन्थ का मूल विषय मोक्षमार्ग का प्रकाशन है तथापि प्रकरणवश इसमें कर्मसिद्धान्त, निमित्त उपादान, स्याद्वाद-अनेकान्त, निश्चय-व्यवहार, पुण्य-पाप, दैव-पुरुषार्थ आदि विषयों पर भी तात्त्विक एवं आध्यात्मिक विवेचना की गई है। इस प्रकार इसमें एक तरह से जैनागम का सार आ गया है। समग्र जैन विचार-पद्धति की सटीक और चुस्त रूपरेखा प्रस्तुत करने में इस ग्रन्थ को अद्वितीय माना गया है। अब तक शायद इस ग्रन्थ की एक लाख से अधिक प्रतियाँ छप चुकी होंगी। कहना न होगा कि इतना विस्तृत प्रचार-प्रसार बिरले ही ग्रन्थों को प्राप्त होता है। प्रकाशन का प्रारम्भ : सवा दो सौ साल पूर्व विक्रम संवत् १८२४-२५ में रचित मोक्षमार्ग-प्रकाशक की हस्तलिखित प्रतियाँ इतनी प्रचलित होती रही कि हिन्दीभाषी प्रदेशों के प्राय: हर जिनालय में वे मिल जाती हैं। मुद्रणयंत्रों के प्रादुर्भाव के साथ ही इस उपयोगी ग्रन्थ के प्रकाशन के प्रयास प्रारम्भ हो गये। प्राप्त मन्चनाओं के आधार पर सबसे पहले सन् १८९७ में बाबू ज्ञानचन्दजी जैनी ने लाहौर से मोक्षमार्गकाशक का पहला संस्करण प्रकाशित किया था। इसके चौदह वर्ष पश्चात् सन् १९११ में श्री नाथूराम प्रेमी ने अपने हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई से इसे प्रकाशित किया। प्रेमीजी इसी संस्करण में पण्डितजी का जीवन परिचय देना चाहते थे परन्तु किसी कारणवश यह सम्भव नहीं हुआ। बाबू ज्ञानचन्दजी ने पण्डितजी की ढूंढारी भाषा में "बहुरि" "जाते" और "जाकरि'' आदि शब्दों को बदल दिया था, परन्तु प्रेमीजी ने यह बदलाव पसन्द नहीं किया और अपना संस्करण मूल प्रति के अनुरूप 'जस-का-तस' ढूंढारी में ही प्रकाशित किया। सन् १९३९ में श्री दुलीचन्द परवार ने जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता से इस ग्रन्थ को प्रेमीजी के १९११ के संस्करण की अक्षरश: प्रति कराकर प्रकाशित किया। इस बीच मुम्बई से ही पं. रामप्रसादजी शास्त्री द्वारा एक और संस्करण प्रकाशित किया जा चुका था पर उसकी प्रति हमारे देखने में नहीं आई। मात्र उसकी सूचना है।
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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