SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक - १२६ उन्हीं के देशघाती स्पर्धकों का उदय होने से संयमासंयम लब्धि अपने स्वरूप को प्राप्त करती है, इसलिए यह संयमासंयमलब्धि क्षायोपशमिक है। (जयधवला पुस्तक ११ की प्रस्तावना का पृष्ठ ३ भी देखें) ___ कषायपाहुडसुत्त गाथा ६२ की टीका चूर्णिसूत्र में भी लिखा है कि चदुसंजलणणयणोकसायाणमणुभागुदीरणा एइंदीए वि देसघादी होई। __ अर्थ- चार संज्वलन, ६ नोकषाय की अनुभाग उदीरणा एकेन्द्रिय जीव में भी देशघाती होती है। पृष्ठ ५०२। इसकी जयधवला में स्पष्ट लिखा है कि "ऐसा नहीं है कि संयतों के ही संज्वलन की देशघाती उदीरणा हो, नीचे भी होती है।" रा.वा.२/५/८/१०८, धवला ७/६४, धवला ५/२० इन ग्रन्थों में स्पष्ट लिखा है कि संचलन के देशघाती उदय होने पर है। पंचम गुणस्थान होता है। सार यह निकला कि पंचमगुणस्थान में नियम से संज्वलन का देशघाती ही उदय है तथा पहले से चौथे में अनियम से देशघाती का उदय है, यह आगम है। बहुरि कहोगे- जैन शास्त्रनिविष चौदह उपकरण मुनि राखे, ऐसा कह्या है। सो तुम्हारे ही शास्त्रनिविष कह्या है, दिगम्बरजैन शास्त्रनिविषै तो कहै नाहीं। तहाँ तो लंगोटमात्र परिग्रह रहे भी ग्यारही प्रतिमा का धारक को श्रावक ही कया। सो अब यहाँ विचारो, दोऊनि में कल्पित वचन कौन है? प्रथम तो कल्पित रचना कषायी होय सो करै। बहुरि कषायी होय सोही नीचापदविष उच्चपनी प्रगट करै। सो यहाँ दिगम्बरविष वस्त्रादि राखे धर्म होय ही नाही, ऐसा तो न कह्या। परन्तु तहाँ श्रावकधर्म कह्या। श्वेताम्बर विषै मुनिधर्म कह्या । सो यहाँ जाने नीची क्रिया होते उच्चत्य पद प्रगट किया सो ही कषायी है । इस कल्पित कहनेकरि आपको वस्त्रादि राखत भी लोक मुनि मानने लागै, तातै मानकषाय पोष्या गया। अर औरनिको सुगमक्रियाविषे उच्चपद का होना दिखाया, तातें घने लोक लगि गए। जे कल्पित मत भए है, ते ऐसे ही भए हैं। तातें कषायी होई वस्त्रादि होते मुनिपना कह्या है, सो पूर्वोक्त युक्तिकरि विरुद्ध भासै है तातें ए कल्पितवचन हैं, ऐसा जानना। बहुरि कहोगे - दिगम्बरविषै भी शास्त्र, पीछी आदि उपकरण मुनिके कहे हैं तैसे हमारे चौदह उपकरण कहे हैं। ताका समाधान - जाकरि उपकार होय ताका नाम उपकरण है। सो यहाँ शीतादिककी वेदना दूरि करनेते उपकरण ठहराईए, तो सर्वपरिग्रह सामग्री उपकरण नाम पाये । सो धर्मविष इनिका कहा प्रयोजन? ए तो पापके कारण हैं। धर्मविषै तो धर्मका उपकारी जे होय तिनका नाम उपकरण है। सो शास्त्र ज्ञानको कारण, पीछी दयाको कारण, कमंडलु शौचको कारण, सो ए तो धर्मके उपकारी भए, यस्त्रादिक कैसे धर्मके उपकारी होय? वे तो शरीर का सुखहीके अर्थि थारिए है। बहुरि सुनो जो शास्त्र राखि महंतता दिखावै,
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy