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________________ [ 709 लोक सं• पृष्ठ सं. 1812 526 1851 1887 556 2152 626 श्लोक-सूची श्लोक मं० पृक सं० हिम पूजा इषानिस्या 919 हितं करोति यो यस्य 288 हिंसारमादिदोषेण 288 हिसादयो मता दोषाः 1007 288 हिमा मसूनृतं स्तेयं 1112 311 हिताहित मानानो हितादानाहित त्यागी 1700 हित प्रिय परिणाम 610 हित्वा निमत्स्य मामोऽसौ 812 242 हिस्सा दोषान मसापीति 19 266 हिसातोऽविरतिहि सा 1005 हिसा निमिष 1006 288 हिसादीनां मुनेः प्राप्ति 1007 288 341 104 हस्तन्यस्त कपोलोऽसो हरन्ति मानसं रामा हसिता रोदनर्वाक्यः हरंति पुरुष वाचा हन्तुमग्ने कृतो मूहो हन्यते तास्यते बध्यते ध्यते हतं मुष्टिभिराकाशं इम्ती जीवितं ष्ट्या होंत्सुकत्व बोनस्व हस्तन्यस्त कपोलोसो हरम्ति मानसं रामा हसितः रोवमक्षिः हरन्ति पुरुषं वाचा हातुमकृतो मूढो 128 160 288 247 352 hto हुंकाराप्ति नेत्र 5 1985 62 ___366 320 427 हास्य कांद कोरकूतय हासोपहास लीलाभि हाहा भूतस्य जीवस्य हास्य सोमभय क्रोध हानि पनी प्रजायेते 341 हृषीक तस्करीमेः हृषीक मागंणा स्तीक्ष्णा हृषीक मार्मणा तीक्ष्णा साधुभि हृषीक विमयः सदभिः तुषोक दन्सिनो दृष्टान् 1202 1262 1286 428 364 1474 1458 302 14 हिमास्ति देहिनोऽचार्य 1725 48 / हेयाः क्रमेण घस्वार 70020
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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