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________________ पंडितपंडित मरणाधिकार स्थूलौ मनोवचोयोगी वद्धि स्थलकायत:। सूक्ष्मेण काययोगेन स्थूलयोगं च कायिकम् ।।२१८७।। सूक्ष्मो मनोवचोयोगौ रुद्ध कर्मालवे जिनः । सूक्ष्मेण काययोगेन सेतुनेव जलासयौ ॥२१८८।। सर्व प्रथम स्थूल काययोग द्वारा स्थूल मनोयोग और स्थूल वचनयोगको रोकते हैं-नष्ट करते हैं । फिर स्थूल काययोगको सूक्ष्म काययोग द्वारा रोकते हैं । सूक्ष्म मनोयोग और सक्ष्म वचनयोग भी जब रुक जाता है तब उनसे होनेवाला ईर्यापथ आस्रव भी रुक जाता है, फिर सभा काययोग मात्रमे उक्त आस्रव होता है, जैसे जलको बांध देनेवाले बंधामें किंचित् छेद होवे तो उससे किंचित् जलास्रव होता है-जल आता है वैसे मूक्ष्म योग द्वारा किंचित् कर्म आता है । अर्थात् सूक्ष्म मनोयोग, वचनयोग, काययोग होनेपर सूक्ष्म कापयोग द्वारा सूक्ष्म मनोयोग और वचनयोगको रोकते हैं और इसतरह एक मात्र सूक्ष्म काययोग में जिनेन्द्र स्थित रहते हैं ।।२१८७॥२१८८।। विशेषार्थ-पुद्गल विपाको शरीर नामकर्मके उदयसे मन, वचन, काययुक्त जोबके कर्म नोकर्म वर्गणाओंको ग्रहण करनेकी शक्ति विशेषको योग कहते हैं। वह योगका सामान्य लक्षण है । अथवा काय, वचन और मनको क्रियाको योग कहते हैं यह व्यावहारिक स्थूल लक्षण है । मन, वचन और कायके द्वारा आत्माके प्रदेशों में कंपन होना योग है । मनोवर्गणा, भाषावर्गणा आदिका अवलंबन लेकर आत्मप्रदेशों में हलनचलन होता है उसे योग कहते हैं, इसतरह योगके लक्षण कहे गये हैं। एक समयमें एक जीवके एक ही योग होता है और कर्म बगंणा, नोकर्म बर्गणा, मनोवगंणा आदि अनेक वर्गणा एक ही समय में यह जीव ग्रहण करता है अतः प्रश्न होता है कि इसके कौनसा योग होगा? इसका उत्तर है कि जिस वर्गणाका प्रवलंबन लेकर आत्मप्रदेशों में कंपन हुआ है उस समय वह योग है । अतः यह लक्षण किया कि वर्गणायें तो अनेक आरही हैं या अनेक वर्गणानोंको ग्रहण कर रहा है किन्तु उनमें जिसका अवलंबन लेकर आत्म-. प्रदेश सकंप हुए उसी वर्गणाके नामवाला योग हुआ-मनोधर्गणाका अवलकन लेकर कंपन हुआ है तो मनोयोग है इत्यादि । इसप्रकार योगकी परिभाषा है। जीव में पुद्गल वर्गणाओंको ग्रहण करनेकी सामर्थ्य है और निमित्त कर्मोदय आदि है। यहां पर सयोग केबलो जब योग निरोध करते हैं तब क्या प्रक्रिया होती है . यह मूल को दो कारिकाओं में बतलाया है । जीवकी योग शक्तिको यहां कृश करके
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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