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________________ मरणकण्डिका वीरासनादिकं बद्धब्धा समपादाविकां स्थितिम् । आश्रित्य वा सुधीः शय्यामुत्तानशयनादिकम् ॥२१६३॥ पूर्वोक्तविधिना ध्याने शुद्धलेश्यः प्रवर्तते । योगीप्रवचनाभिज्ञो मोहनीयक्षयोचतः ॥२१६४॥ पूर्व संयोजनाहन्ति तेन ध्यानेन शुद्धधीः । मिथ्यात्वमिश्रसम्यक्स्व त्रितयं क्रमतस्ततः ॥२१६५।। होते हैं या कायोत्सर्ग मुद्रामें दोनों पैरोंको समान कर खड़े होते हैं अथवा एक पार्श्वसे लेटकर या उत्तान रूपसे लेटकर वे बुद्धिमान मुनि पूर्वोक्त विधि से शुद्ध लेश्या-शुक्ल लश्या युक्त हो ध्यान में प्रवृत्त होते हैं. कैसे हैं मुनिराज ? शास्त्रोंके ज्ञाता-अंग तथा पूर्वरूप श्रुतके पारगामी हैं तथा मोहनीय कर्मकी प्रकृतियोंका क्षय करने में उद्यत हैं ॥२१६३।।२१६४।। शुद्ध बुद्धिवाले वे मुनिराज धर्म्यध्यान द्वारा पहले अनंतानुबंधी संबंधी चार कषाय क्रोध, मान, माया, लोभको विसंयोजना करके नष्ट करते हैं, तदनंतर मिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्व नामको दर्शन मोहकी तीन प्रकृतियोंको नाश करके भायिक सम्यग्दृष्टि होते हैं ।।२१६५।।। विशेषार्थ-यहांपर सातवें पुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्तिका क्रम कहा है, ऐसे क्षायिक सम्यक्त्व चौथे गुणस्थानसे लेकर सातवें गुणस्थान तक किसी भी गुणस्थानमे हो सकता है । क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करनेका यह क्रम है-चौथे आदि गुणस्थानवर्ती कोई वेदक-क्षयोपशम सम्यक्त्वी कर्मभूमिका मनुष्य है वह केवली अथवा श्रुत केवलोके पादमूलमें इस क्षायिक सम्यक्स्थको प्राप्त करता है। यह सम्यक्त्व मिथ्यात्वसे सासादनसे मिश्रसे न होकर सम्यक्त्व पूर्वक ही होता है, सम्यक्त्व में भी प्रथमोपशम या द्वितोयोपशम सम्यक्त्व से न होकर बेदक सम्यक्त्य से हो होता है वेदक सम्यक्त्वी कर्मभूमिज मनुष्योंमें भी द्रव्यस्त्रो और द्रव्य-नपुंसक वेदो इसे प्राप्त नहीं करता, जो द्रव्यसे पुरुषवेदो है बहो प्राप्त करता है । इसमें सर्वप्रथम अध:करण अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन तीन करणोंको करते हुए अनिवृत्तिकरणमें चार अनंतानुबंधीका विसयोजन करता है अर्थात् इन चार कषायोंको प्रत्याख्यानावरण आदि बारह कषाय तथा नोकषाय में संक्रामित करता है और इसतरह अनंतानुबंधोका सत्तासे नाश करता है। तदनंतर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कालतक विश्राम लेता है 1 पुनः उक्त अध:करणादि तीन
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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