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________________ * पंडित-पंडित मरणाधिकार एवं समासतोऽवाचि मरणं बालपंडितम् । अधुना कयिष्यामि मृत्यु पंडितपंडितम् ।।२१६०॥ अप्रमत्तगुणस्याने वर्तमानस्तपोधनः । पारोदु क्षपकरणों धर्मध्यानं प्रपद्यते ॥२१६१॥ अनुज्ञाते समे देशे विविक्त जंतुजिते । ऋग्वायतवपुर्यष्टिः कृत्वा पर्यकबंधनम् ॥२१६२।। इस प्रकार संक्षेपसे बालपंडित मरण का कथन किया, अब पंडित पंडित मरणको कहूंगा ।।२१६०॥ ___ अप्रमत्त संयत नामके सातवें गुणस्थान में कोई मुनिराज विद्यमान हैं वे क्षपक श्रेणो आरोहन करने के लिये धर्म्यध्यानको धारण करते हैं ॥२१६१।। धर्म्यध्यानको ध्याने के लिये जंतरहित एकांत देश में निवास करते हैं, कैसा है वह स्थान-प्रदेश ? जिसमें निवास करने के लिये उसके मालिक या अधिष्ठाता देवकी अनुज्ञा ली गयी है ऐसे रम्य तथा इन्द्रियोंको क्षोभ नहीं करने वाले तथा पवित्र स्थानमें आकर पर्यंक आसनसे बैठकर अपने शरीरको सरल सीधा तानकर रीढ़की हड्डीको एकदम सीधाकर बैठ जाते हैं ।।२१६२।। अथवा वीरासन प्रादि आसनोंको करके ध्यानमें स्थित
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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