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मरएकण्डिका सिद्धो विवर्द्धनो राजा चिरं मिथ्यात्व भावितः । वृषभस्वामिनो मूले क्षणेन धुतकल्मषः ॥२१००।
॥ इति निरुद्धतमम् ॥ प्रोक्ता भक्तप्रतिज्ञेति समासण्यासयोगतः ।
इदानी मिगिनी वक्ष्ये जन्मकक्षकुठारिकाम् ।।२१०।। जिनदीक्षा लेकर अन्तर्मुहर्त मात्रकालमें रत्नत्रयकी आराधना करके कर्ममलसे मुक्त-सिद्ध हो गया था ॥२१००॥
विवर्द्धनकी कथा___ इस अवसर्पिणीकालके चतुर्थकालके प्रारंभमें आदि तीर्थकर वृषभनाथने जिनदीक्षा ग्रहणकर तपस्या द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया था। उनके राज्य अवस्थाके पुत्र भरत थे जो एकसी एक भाईयोंमें सर्वजेष्ठ पुत्र थे, महापुण्योदयसे राजा भरतके आयुधशालामें चक्ररत्त उत्पन्न हुभा । मंपूर्ण छह खंडोंको जीतकर भरत षटखंडाधिपति चक्रवतो हए; उनके हजारों पुत्र हुए । उन में विवर्द्धनकुमार को आदि लेकर कई पुत्र मूक हुए थेबोलते नहीं थे । किसी दिन चक्रवर्ती उन्हें लेकर समवशरण में भगवान आदिनाथके दर्शनार्थ गये । समवशरण सभामें बैठकर दिव्यध्वनि सुनते ही वे सब कुमार विरक्त हए दिव्य ध्वनिमें अपने पूर्वभवोंको सुनकर वैराग्यसे ओतप्रोत होकर तत्काल प्राप्त हुई शक्ति के द्वारा अर्थात् गूगापन नष्ट हो जानेपर उन्होंने आदि प्रभुसे जिनदीक्षा ग्रहण को। और इसतरह उनको लेश्याकी अत्यंत विशुद्धि प्राप्त हुई । छटे सातवें गुणस्थानोंमें परिवर्तित होते हुए उन्होंने मुहूर्त प्रमाण कालमें ही शुक्लध्यानको प्राप्त किया । क्षपक श्रेणिमें क्रमश: आरोहण कर धातिया कर्मों का नाश किया तथा अघातिया कर्मोंका भी नाश करके सिद्धपद पाया । इस तरह अत्यंत अल्पकाल में उन्होंने शाश्वत सुखको पाया था । अतः भव्य जीवोंको चाहिये कि कालको न देखे कि अब अल्पकाल हो रह गया है कसे आत्मकल्याण करे इत्यादि, जब आत्मबोध हो तभी वैराग्य धारणकर आत्महित करना चाहिये।
विवर्द्धनकुमार को कथा समाप्त । इसप्रकार अविचार भक्त प्रतिज्ञामरणका वर्णन किया ।
इंगिनो मरणका वर्णनभक्त प्रतिज्ञा भरणका संक्षेपसे तथा विस्तारसे वर्णन इसप्रकार मेरे द्वारा