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________________ ६०८ } मरणकण्डिका द्रव्यं क्षेत्रं बलं कालं ज्ञात्वा क्षपकमानसं । प्रप्रकाशं मतं हेताबन्यत्रापि सतीरशे ॥२०६०॥ ॥ इति निरुद्धं ॥ जलानलविषव्यालसनिपातथिसूचिकाः । हरंति जीवितं क्षिप्रं भानूस्रा इव तामसम् ॥२०६॥ जाय वह प्रकाश अवीचार भक्तत्याग कहलाता है और जो जनता द्वारा ज्ञात नहीं है वह अप्रकाश अवीचार भक्त त्याग मरण समझना चाहिये ॥२०८६॥ द्रव्य, क्षेत्र, बल, काल और क्षपकका मानस इतनी बातोंको ज्ञातकर निरुद्ध अवीचार भक्त त्याग प्रकाशित या अप्रकाशित किया जाता है । प्राशय यह है कि इस समय वसतिका आदि योग्य उपलब्ध है या नहीं, क्षपकके स्वयंका मानस दृढ़ धैर्य युक्त है या नहीं क्षेत्र देश योग्य है या नहीं, क्षपको शक्ति कितनी है, काल ऋतु रूक्ष-उष्ण या कैसी है इत्यादि बातोंका विचार करके यदि ये सब अनुकूल होये तो निरुद्ध प्रवीचार भक्त त्यागको जनसमुदाय-श्रावक श्रादिके समक्ष प्रकाशित करना चाहिये अर्थात् यह मुनिराज सल्लेखना कर रहे हैं प्राहारका त्याग किया है इत्यादि प्रगट करना चाहिये । और यदि क्षपक परीषह आदिसे घबरानेवाला है अर्थात् धैर्य एवं शक्तिसे कमजोर है । समय समाधिके अनुकूल नहीं है ऐसे समयमें समाधिका अवसर प्राप्त होता है तो क्षपकके सल्लेखनाको-आहारादिका त्याग किया इत्यादि बातोंको जनताके समक्ष प्रगट नहीं करना चाहिये । क्षपकके बंधुगण या राजा प्रजा सल्लेखनाके विरुद्ध होये तो भी क्षपककी सल्लेखनाकी तैयारीको प्रगट नहीं करे ।।२०६०।। इसप्रकार निरुद्ध अवीचार भक्त प्रत्याख्यान मरणका स्वरूप कहा ।। अब निरुद्धतर अवीचार भक्त प्रत्याख्यानका कथन करते हैं--- जल, अग्नि, विष, जंगली र पशु इत्यादिके द्वारा घोर उपसर्ग उपस्थित होनेपर तथा सन्निपात रोग, तीन शूल रोग आदिके होनेपर तत्काल मरणका प्रसंग प्राप्त होता है, अथवा ये जलादि उपसर्ग एवं शूल आदि रोग शीघ्र जीवनको हर लेते हैं, जैसे सूर्यकिरणें अंधकारको हर लेती हैं ॥२०६१।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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