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अवीचार भक्त त्याग इंगिनी प्रायोपगमनाधिकार
भक्तत्यागोस्त्यवीचारो निष्चेष्टस्य दुरुत्तरे । सहसोपस्थिते मृत्यौ योगिनो वीर्यधारिणः ॥२०८४।। निरुद्ध' प्रथम तत्र निरुद्धतरमूचिरे । द्वितीयं तु तृतीयं च निरुद्धतममुत्तमाः ॥२०६५॥ निरुद्ध कथितं तस्य रोगातकाविपीडितं । जंघाबलविहीनो यः परसंघगमाक्षमः ॥२०५६॥
अवीचार भक्त प्रत्याख्यान मरणका वर्णन
वोर्यधारी योगी मनि के अकस्मात् जिसका रोकना कठिन है। ऐसे मरण के उपस्थित हो जानेपर चेष्टा रहित-शक्ति रहित उस साधुके अवीचार भक्त प्रत्याख्यान नामका समाधिमरण होता है । अर्थात् अचानक भयंकर रोग, उपसर्ग आदिके आनेपर आहार त्याग रूप अवीचार भक्त प्रतिज्ञा मरणको मुनि स्वीकार करते हैं ।।२०६४।।
अवीचार भक्त त्याग मरणके तीन भेद हैं-निरुद्ध, निरुद्धतर और परम निरुद्ध इसप्रकारके तीन भेदोंका गणधरादि उत्तम ऋषियोंने वर्णन किया है ।।२०५५।।
निरुद्ध अबोचार भक्त त्यागका कथन करते हैं
उस मनिके निरुद्ध नामका अबोचार भक्त प्रत्याख्यान कहा है, जो रोग, आतंक आदिसे पीड़ित है, जंघाबलसे रहित है, परसंधमें जानको असमर्थ है ॥२०८६।।