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________________ . बालमरणाधिकार विस्तरेणागमोपलेष, मध्ये सप्तवशस्वहम् । मरणान्यत्र पञ्चैव, कथयामि समासतः ।।२।। पंडितं पंडितादिस्पं, पंडिसं बालपंजितं । चतुर्थ मरणं बालं, बालबालं च पंचमम् ।।२।। अर्थ-आगम में विस्तारपूर्वक सत्तरह प्रकार के मरणों का वर्णन पाया जाता है, मैं ग्रन्थकार उनमें से केवल पाँच प्रकार के मरणों का संक्षेप से इस ग्रन्थ में वर्णन करता हूं ॥२८॥ विशेषार्थ-भगवती आराधना टीका में मरण के सत्तरह भेद इसप्रकार कहे हैं १ आधीचिमरण, २ तद्भवमरण, ३ अवधिमरण, ४ आदि अन्तमरण, ५ बालमरण, ६ पंडितमरण, ७ अवसन्नमरण, ८ बाल पंडितमरण, ९ सशल्यमरण, १० बलाकामरण, ११ वोसट्टमरण, १२ विप्पाण समरण, १३ गिद्धपुट्ठमरण, १४ भक्त प्रत्याख्यानमरण, १५ प्रायोपगमनमरण, १६ इंगिनीमरण और १७ केवलोमरण अर्थात् पंडित पंडितमरण । इन सबका लक्षण यहाँ पर कहते हैं—आबीचिमरण-प्रतिक्षण आयुके एक एक निषेक उदय में आकर समाप्त होना । तद्भवमरण-वर्तमान आयु का समाप्त होना, अर्थात् मरणकर अन्य भवमें चले जाना। अवधिमरण-इम वर्तमान पर्याय का जैसा मरण हुआ वैसा आगामी पर्याय का होना--जितनी और जो आयु वर्तमान में भोग रहे हैं, उतनी वैसी आयु आगे के भव में भी होना । आदि अन्तमरण
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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