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________________ Mauriya धोमवाचार्यामितगतिप्रणीता मरणकण्डिका [ आराधना विधि ] पीठिका सिद्धान् नत्वाहदादींश्च, चतुर्धाराधना फलं । क्रमेणाऽहं ध्रुवं वक्ष्ये, स्वस्वरूपोपलब्धये ॥३॥ द्योतनं मिश्रणसिद्धि, यदि निव्यू दिमञ्जसा । वर्शनशानचारित्र, सिद्धि हेतु समोहिते ॥२॥ धोतनं दर्शनादीना, मलमलविसारणं । आत्मनो मिश्रणं साद्ध, तेरेकोरणं मतं ॥३॥ यह सल्लेखना विषयक ग्रन्थ है, इसके प्रारंभ में ग्रन्थकार स्वयं के एवं श्रोतृजनों के प्रारब्ध कार्य में आने वालो विघ्न बाधाओं को दूर करने के लिए मंगल करते हैं। सिद्ध परमात्मा, अहंन्त परमात्मा तथा आदि शब्द से आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठियों को नमस्कार करके मैं (ग्रन्थकार) ऋम से चार प्रकार को आराधना को और आराधना के फल को अपने स्वरूप की (मोक्ष की प्राप्ति के लिये निश्चय से कहता हूं ||१|| आराधना किसे कहते हैं एवं वह किसके होती है ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की सिद्धि के हेतु पांच कहे गये हैंधोतन, मिश्रण, सिद्धि, व्यूढि एवं निव्यू ढि। मरणकाल में इन सम्यग्दर्शन आदि रत्न. त्रय की निरतिचार परिणति होना आराधना कहलातो है ।।२।। ___सम्यग्दर्शन आदि के मल अतीचारों का भलीप्रकार से निराकरण करना 'द्योतन' कहलाता है । आत्मा के साथ उस सम्यग्दर्शनादि का एकीकरण करना मिश्रण कहलाता है । इसप्रकार द्योतन और मिश्रण का अर्थ जानना चाहिये ।।३।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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