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अनुशिष्टि महाधिकार
रिगार कल्लोला यौवनाम्नवी I
न विलासास्पदा ह्रासफेना बहूति संयतम् ॥। ११६६ ॥ विलाससलिलोती येस्तीघ्रा यौवनापगा
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प्रग्रस्ताः प्रमदाग्राहस्ते धन्या मुनिपुंगवाः ।। ११६७। धन्यं स्त्रीव्याधनिर्मुक्ताः कटाक्षेक्षणसायकाः 1 विष्यंति विषयारण्ये वर्तमानं न योगिनम् ।।११६८ ।। न विश्वोकस्त्रोऽभ्येति विलासनवरो मुनिस । कटाक्षाक्षोऽगनाव्याप्रस्तारूण्यारण्यवर्तिनम्
।।११६६ ।।
छंद उपजाति
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त्रिलोकदाही विषयोद्धतेजाः । तारुण्य तृष्याज्वलितः स्मराग्निः । न प्लोषते यं स्मृतिधूमजालः । स वंदनीयो विदुषा महात्मा ।।११७० ।।
वेग है तथा नदी में फेन रहता है तो इस स्त्रीरूपी नदी में मंद मुस्कान, ललित हास्यरूपो फेन है ऐसी स्त्री रूपी नदो भो संयमी मुनिको बहाके नहीं ले जाती है ।। ११६६ ।। जिन मुनिजनों के द्वारा विलासरूप जलवाली योवन रूपी तीव्र वेगशाली नदी पार हुई है तथा जो स्त्रीरूपी मगरों द्वारा ग्रस्त नहीं हुए हैं वे मुनिराज धन्य हैं ।। ११६७।। विषयरूपी वनमें स्थित यतिको स्त्रीरूपी व्याध शिकारी द्वारा छोड़े गये कटाक्ष ईक्षण रूपी बाण बेधित नहीं करते हैं वह यति धन्य है अर्थात् वे मुनिजन धन्य हैं जिनका मन स्त्रोद्वारा मोहित नहीं होता ।। ११६८ ।। विक्कोक दो भौहेंके मध्य भागको सिकोड़ना ही है, दांत जिसके विलास अर्थात् आंखें मटकाना ही है, नख जिसके और कटाक्ष रूपी आंख वाला स्त्री रूपी व्याघ्र-शेर तारुण्य रूपी बनमें विचरण करनेवाले मुनिको नहीं पकड़ता है । वही मुनि धन्य है ।।११६६।।
तीन लोकोंको जलाने वालो, विषय रूपी बढ़ते तेजसे युक्त, तारुण्य रूपी घासफूस से प्रदोप्त हुई एवं स्मृति रूपी धुंआ जाल जिससे निकल रहा है ऐसी कामरूपी afra frest नहीं जलाती; वह महात्मा विद्वान् द्वारा वंदनीय है अर्थात् जिसका चित्त काम वासना से रहित है वह बंध है | ११७० ।।
विपुल यौवनरूपी जलवाला रतिरूपो लहरोंसे व्याप्त दुस्तर ऐसे विषय रूपी समुद्रको जो निराकुल हुआ पार करता है वह इस संसार में धन्य पुरुषोंमें महा धन्य