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अनुशिष्टि महाधिकार यदि ते जायते बुद्धिलॊकद्वितय मैथुने । उद्योगः पंचधा कार्यः स्त्रोबैराग्ये तदा त्वया ॥११६२।।
करती है, पुण्य बुद्धि को तो जला देती है और पापबुद्धि को उत्पन्न करती है, जनापवादको उत्पन्न करती है प्रशंसारूप वृक्षको काट डालती है । अहो यह स्त्री संगति क्या-क्या कष्ट नहीं देती ? ।।११६१।।
स्त्रो समग दोष तर्णन समाप्त । संस्तरमें स्थित क्षपकके लिये निर्यापकाचार्य महावतोंका उपदेश दे रहे हैं उसके अन्तर्गत ब्रह्मचर्य नामके चौथे महानतका उपदेश विस्तार पूर्वक देते हुए कह रहे हैं कि
हे क्षपक ! उभय लोक में मैथुन सेबनको यदि तुमको इच्छा हो जाय तो तत्काल ही पांच प्रकारका उद्योग स्त्री वैराग्य में करना चाहिये । अर्थात् स्त्रोके दोष, शरोरके दोष आदिका विचार करना चाहिये ॥११६२।।
विशेषार्थ-ब्रह्मचर्यका अखंड निर्दोष पालन करनेके लिये आचार्योंने यहांतक पांच प्रकारका उपदेश दिया है जो स्त्रियोंसे वैराग्य उत्पन्न कराता है, स्त्रियों में जो आसक्ति है, राग-प्रेम है, मन में जो कामुकता है उसको दूर करनेके लिये अत्यंत हृदयग्राहो पांच प्रकरण क्रमश: यहां तक बताये हैं, सर्वप्रथम काम दोषोंका प्रकरण आया है, कि काम सेवन किसप्रकार निंद्य है, पुन: स्त्रो के दोष बताये, फिर स्त्री और पुरुष दोनोंके शरीरके दोष बताये कि अपना खुदका और जिस मे भोग करना चाहता है, उसका शरीर कितना धिनावना है । पुनः वृद्ध सेवा प्रकरण है जो शीलवान पुरुषकी सेवा करता है वह ब्रह्मचर्य का पालन करने में समर्थ होता है और जो शोलवान नहीं है उसके संपर्कसे ब्रह्मवतमें कैसी शिथिलता आती है यह वृद्ध सेवा प्रकरणमें बहुत सदर रोत्या समझाया है । अंत में स्त्रीजनोंके संगतिसे होनेवाले दोषोंका कथन है । इस प्रकार कामदोष, स्त्रोदोष, शरीर दोष, युद्धसेवा और स्त्रो संसर्गदोष कथन द्वारा वैराग्य उत्पन्न कराया गया है अर्थात् स्त्रोसे वैराग्य होने के लिये इन पांचों विषयोंका विचार करते रहना चाहिये । क्षपकको आचार्य प्रेरणा देते हैं कि तुम वैराग्य परक इन पांच विषयोंका विचार करते रहना जिससे ब्रह्मवत में सर्वदा दृढ़ता बनी रहे।