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________________ २७८ ] मरणकण्डिका जननी भगिनी भार्या बेहजा बहजन्मसु । प्रायासाकीर्तिकारिण्यस्तस्य संति विशीलिकाः ॥६६८।। विशोलो दुर्भगोऽमुत्र जायते पारवारिकः । निर्दोषोऽप्यश्नुते बंधं संक्लेशं कलहं वधम् ॥६६६।। महान्तं दोषमासाद्य भवेत्र स्मरमोहितः । मृत्वा कडारपिंगोऽगाच्छवभ्र दुःसहदेवनम् ॥१७॥ परस्त्रीका सेवन करनेसे कामो पुरुषको बहुत जन्मों तक कुशीला माताको प्राप्ति होती है तथा उसकी भगिनी, पत्नी, पुत्री भी कष्ट तथा अपकीति करनेवाली दुराचारिणी होती है । आशय यह है कि जो पराया नारोका शील बिगाड़ देता है उसके भव भवमें माता बहिन भार्या आदि कुशीला होती हैं जैसे उसने किसी परायी पुत्री पत्नी आदिका शील नष्ट कर दिया उसे कुशीला बनाया वैसे ही उसके पुत्री पत्नी आदिका दूसरा कोई पुरुष शील बिगाड़ देगा ॥९६८॥ जो परनारीका सेवन करता है वह अगले भवमें कुरूप और दुराचारी बनता है। वह कदाचित् निर्दोष भी हुआ तो उसे अकारण ही बंध, संक्लेश, कलह, वधको भोगना पड़ता है अर्थात् खोटा काम नहीं करनेपर भो उसपर दोषारोपण आता है और उससे उसको बांध देना, मार देना आदिका कष्ट अकारण हो भोगना पड़ता है ।।९६६॥ कामसे मोहित हुआ कडारपिंग इस भव में महान दोषको प्राप्त कर मरा और दुःसह वेदनाबाले नरक में चला गया ।।९७०।। कडारपिंगकी कथा कांपिलय नगरमें राजा नरसिंह था उसका मंत्री सुमति नामका था। उसके एक कडारपिंग नामका पुत्र हुआ वह अत्यंत कामासक्त था। एक दिन उसने कुबेरदत्त सेठको सर्वांगसुदरी प्रियंगुसुदरो पत्नी को देखा । देखकर वह उसपर आसक्त हुआ। समति मंत्रीने पत्रका हाल जानकर पहले तो कामवासनाको मन में धिक्कारा किन्तु पुत्र के मोहमें आकर प्रियंगुसुदरो को हस्तगत करने के लिये उसके पति कुबेरदत्तको द्वीपांतर में भेजना चाहा किन्तु प्रियंगुसुदरी बुद्धिमती थो उसने ताड़ लिया कि यह कामी कडार
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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