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मरण कण्डिका कामी शूरोऽपि तीक्ष्णोऽपि मुख्योपि भवति स्फुटम् । विगर्षः श्रीमतो वश्यो वैद्यस्य गवानिव ॥६४३॥ विधत्ते चाट नीचस्य कुलीनो मानवानपि । मातरं पितरं याचा दासं कुर्वन्नपत्रपः ॥६४४॥
- ..... - - - - - वह पुनः पुनः अशुद्ध बोलता रहा तब बड़े भाईने उसको तीन बार चाँटे लगाये उस दिनसे सब लोग उसको वारविक कहने लगे "त्रिक मायने तीन और वार मायने बार" तीन बार मारनेसे वारत्रिक नाम प्रसिद्ध हुआ । आगे बह बालक वेद वेदांगमें पारंगत हुआ। किन्तु लोगों द्वारा वारविक नामसे पुकारे जानेसे उसे दुःख होता रहता, किसी दिन जनमुनिसे धर्मोपदेश सुनकर उसको वैराग्य हुआ दीक्षा लेकर बह वारत्रिक देशदेशमें विहार करने लगा। एक दिन आहारार्थ नगर में आ रहा था, मार्ग में एक कन्याकी बरातमें वेश्याका सुदर नृत्य हो रहा था, उस नत्यकारिणी पर वारत्रिक मनि मोहित हो गये । नर्तकी और वारत्रिक अब साथ रहने लगे। घूमते हुए दोनों राजगृह नगरोमें राजा श्रेणिकके समीप अपनी सुदर नृत्यकला दिखा रहे थे । राज सभामें एक विद्याधर उपस्थित था उसको नृत्य देखते हुए जातिस्मरण हो गया और उसने नर्तको आदिके पूर्वभव बताये जिससे धारत्रिक नर्तकी तथा और भी अनेक प्रेक्षक लोगोंको वैराग्य हो गया, वारत्रिकने पुन: मुनि दीक्षा ग्रहण की । नर्तकीने अपने योग्य श्राविकाके नत स्वीकार किये । इसप्रकार वारत्रिक मुनि स्त्रोके रूपको देखने मात्रसे दीक्षासे भ्रष्ट हो गया था ।
कथा समाप्त । कामी शूर भी है, तीक्ष्ण और मुख्य है तो भो विषयके आधीन होता हुआ मानरहित होकर धनवान के बश हो जाता है जैसेकि रोगो पुरुष वैद्यके वश हो जाता है ॥९४३।। कामी स्वयं कुलीन और मानयुक्त होने पर भी नीच की चाटुकारी करता है, तथा वचन द्वारा माता पिताको दास करता हुआ निर्लज्ज होता है ।।९४४।।
भावार्थ-कामांध विषय सेवनके लिये, इच्छित स्त्रो के लिये आप स्वयं कलवान हैं तो भी हीन जाति के पुरुष के पैरको दबाना आदिरूप खुशामद करता है तथा मेरी मां तुम्हारी दासो है मेरे पिता तुम्हारे दास हैं ऐसा निर्लज्ज होकर कहता है ।