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________________ पृष्ठ ३७-४० ४०.४६ ४९-५२ [ २७ ] विषय श्लोक व्युत्सृष्ट देहता प्रतिलेखन ९७-९९ शिक्षा नामा तीसरा अधिकार [ भक्त प्रत्याख्यान के चालीस अधिकारों में से तीसरा] १.०.११२ भक्त प्रत्याख्यान के ४० अधिकारों में से विनय नामा ४ अधिकार ११३-१३७ समाधिनामा ५वां अधिकार भक्त प्रत्याख्यान के ४० अधिकारों में से ५वां] १३-१४९ मनको शांत, स्थिर करना, अशुभ से रोकना समाघि है १३८ भक्त प्र. के ४० अधिकारों में से ६ अनियत विहार अधिकार १५०-१६० अनियत विहार से सम्यक्त्व में शुद्धि, रत्नत्रय में स्थिरता परीषह जय का अभ्यास आदि गुण प्राप्त होते हैं साघुत्रों को कण्ठगत प्राण होने पर भी आगम की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए भक्त प्र० के ४० प्रधिकारों में से ७ परिणाम अधिकार १६१-१६८ पालन्द विधि, परीहार विधि १६२ भक्त प्र० के ४० अधिकारों में से ८वां सपधित्याग अधिकार १६९-१७७ भक्त प्र० के ४० अधिकारों में से ९वां निति अधिकार १७८-१८४ भक्स प्र० के ४० अधिकारों में से १० भावना अधिकार १८५-२०९ कांदी आदि पांच संक्लिष्ट भावना त्याज्य हैं, इनका स्वरूप १९६-१६१ संक्लेश रहित तपोभावना प्रादि पाच भावना ग्राह्य हैं नागदत्त मुनि की कथा २०६ सल्लेखनादि अधिकार २१०-४३२ बाह्य तप के भेद, अनशन तप के सार्वकालिक और प्रसार्वकालिक दो भेद २१३ अवमौदर्य, रस त्याग आदि २१६-२४१ भिक्षु प्रतिमा भक्त प्रत्याख्यान सन्यास का काल १२ वर्ष उत्कृष्ट है, उक्त काल में फंसा तप करें २५९.२६३ ५२-५६ ५३-५४ ५६-५९ ६२-६३ ७०.१३१ ७१ ७१-७८ ८२
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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