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________________ [ २५ ] निश्चल स्थित होकर आरमध्यान पूर्वक प्राणों का विसर्जन किया जाता है। इस अधिकार में अल्पकाल में ही अपने हित के साधक महामुनि विवद्धनकुमार, धर्मसिंह, वृषभसेन, यतिवृषभ और शकटाल मुनियों को कथायें हैं। इनमें अन्त की तीन कथाएं तो बड़ी ही रोमांचकारी और विस्मयकारी हैं । इसमें ६६ श्लोक हैं । बालपंडित मरणाधिकार पंचम गुणस्थानवी जीवों के बालपंडित मरण होता है जो एक बार बालपंडित मरण कर लेता है वह सातवें भव में मुक्त हो जाता है । इसमें १० ही कारिकायें हैं। पंडितपंडित मरणाधिकार यह मरण १४ गुणस्थानवर्ती अरहंत भगवान के होता है यही निर्वाण कहलाता है। इसमें शुक्लध्यान द्वारा धाति और अघाति कर्मों का नाश किया जाता है। शुक्लध्यान की बाह्य सामग्री का किंचित् वर्णन कर क्षपक श्रेणी में मोहनीय प्रादि कर्मों के नाश का क्रम बतलाया है, पुनश्च केवलो समुद्घात तथा अंत में ८५ अधातिकर्मों का नाश होता है । सिद्धों के सुख का सुन्दर रीत्या विवेचन किया है। इसमें ६५ श्लोक हैं। सब अधिकारों के कूल २२३५ श्लोक हैं । रत्नत्रय स्वरूप आराधना का पृथक रूप से ३२ श्लोकों में स्तोत्र किया गया है तथा कौन से नक्षत्र में समाधि-संस्सर ग्रहण करे तो कौन से मात्र में मरण होगा इस विषय का प्राकृत भाषा में कथन है और अंत में आठ श्लोकों में ग्रंथकर्ता अमितगति प्राचार्य की प्रशस्ति है। --मायिका शुभमती
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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