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________________ [ २३ ] १५१६ से १५४६ श्लोकों तक है। अहिंसा महाव्रत के कथन में यमपाल चांडाल की, सत्यमहाव्रत में राजावसु को कथा है । ब्रह्मचर्य के वर्णन में तो प्राचार्य देव ने जो सांगोपांग विवेचन किया उसे पढ़कर कौन सा सहृदय व्यक्ति प्रब्रह्म से विरक्त नहीं होगा ? अवश्य होगा। इसमें काम के दोष बताते हुए वारत्रिक, गोरसंदीव और कडारपिंग की कथा है, स्त्रीदोष में रक्ता, गोपवतो और वोरवती का उल्लेख है। शरीर दोष में सुरत राजा को कथा । वृद्ध सेवा में चारुदत्त की कथा तथा संगति दोष वर्णन में शकट, कुपार, रुद्र, पाराशर आदि का उल्लेख है । परिग्रह त्याग महाव्रत में पांच कथाओं का उल्लेख है । गुप्ति समिति पांच महाव्रतों को पच्चीस भावनाएं इनका वर्णन कर, दशल्य त्याग का उपदेश है । इन्द्रिय दोष कथन में भी अनेक उदाहरण हैं। कषाय के दोषों के वर्णन में द्वीपायन आदि का समुल्लेख है । अन्त में निद्रा जीतने के उपाय तथा तपस्या की प्रेरणा पुर्वक यह महाधिकार पूर्ण होता है । सारणादि अधिकार (३४) सारणा - समाधिस्थ मुनि वेदना से पीड़ित होने पर उन्हें पुनः पुनः जिनवारो को शिक्षारूप अमृत से स्थिर करना वैयावृत्य द्वारा वेदना का प्रतीकार करना, क्षपक बेदना से बेहोश होने पारूप नियपिक आचार्य का परम कर्तव्य है वेदना से प्राकुलित क्षपक की जो उपेक्षा करता है वह प्रधार्मिक है, वह क्षपक को भवसमुद्र में डुबोने वाला है और जिनधर्म बाह्य है। इसमें २० कारिकायें हैं । (३५) कवच - जिस प्रकार रण में प्रवेश करने वाला सुभट यदि लोहमय कवच पहिने हुए है तो वह बाण आदि से घायल नहीं होता और क्रमशः युद्ध में विजय प्राप्त करता है उसी प्रकार महान् महान् उपसर्ग विजेता मुनिपुंगवों की कथानों द्वारा दिव्य उपदेश रूपी कवच क्षपक को प्राचार्य पहिना देते हैं। उससे यह समाधिस्थ साधु घोरता पूर्वक क्षुधादि की बाधा सहन कर कर्म शत्रु पर विजय प्राप्त करता है। इसमें सुकुमार आदि घोर उपसर्ग विजयी १५ मुनियों की कथायें हैं। इसमें १७६ श्लोक हैं । ( ३६ ) समता - निर्यापक आचार्य पुनरपि क्षपक को आहार, पान वैयावृत्य करने वाले तथा शय्या आदि में समभाव रखने का उपदेश देते हैं । इसमें १५ कारिकायें है । ध्यानादि अधिकार ( ३७ ) ध्यान - प्रथम हो प्रातं रौद्र रूप दो प्रशुभ ध्यानों का त्याग करना बताया है फिर धर्म्यध्यान के वर्णन में उसका परिकर, भेद आदि का कथन है इसी में बारह भावनायें हैं ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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