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________________ [१३] प्रस्तुत मरणकंडिका (पाराधना) को अनुवादिका इस ग्रन्थ को चूकि पृथक से टीका-अनुवाद अभी तक कहीं से होकर प्रकाशित नहीं हुधा अतः पूज्य १०५ प्रा० जिनमतोजी ने लिखकर सकल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज का पारमार्थिक उपकार किया है-यह बात अत्यन्त स्पष्ट है । पतः आजकल संस्कृत या प्राकृत जैसी भाषामों के ज्ञाता तो रहे नहीं, अतः पूज्या माताजी की यह सरल-जल अनुवाद-चन्द्रिका सर्वोपयोग योग्य होगो हो । प्रेरणा के स्रोत इस ग्रन्थ के अनुवाद की प्रेरणा पूज्य पट्टाधीश प्राचार्य अजितसागरजी ने गत वर्ष उनके सलूम्बर-चातुर्मास के काल में दी । आचार्य श्री की स्वयं की २० वर्ष पूर्व को हस्तलिखित मरणकंडिका भी है । प्राचार्य श्री ने इस हस्तलेखन के पूर्व भी इस ग्रन्थ का प्रायोपान्त अनेक बार स्वा. ध्याय किया था । अापको यह भावना रही थी कि इस अन्य का पृथक से अनुवाद होना चाहिए। इस ग्रंथ के आदि के १९ श्लोक कहीं नहीं मिले । सोलापुर तथा कलकत्ता के प्रकाशनों में भी उक्त प्रथम १९ श्लोक नहीं हैं । पूज्य आचार्य श्री ने नागौर के भण्डार से इस ग्रन्थ को पूर्ण प्रति प्राप्त कर इन्हें उतार लिए। जिसके कारण से अब यह ग्रन्थ पूरा अस्खलित छप रहा है, इस बात को खुशो है। आचार्य श्री के भावों के अनुसार ग्रंथ के अन्त में समाधिमरण से सम्बन्धित विभिन्न ग्रंथों के लगभग १५० श्लोक भी दिये गए हैं। इस प्रकार आचार्य श्री को प्रेरणा से माताजी ने यह कार्य हाथ में लिया तथा प्रसन्नतापूर्वक इसे पूरा किया है। अनुवादिका का देह परिचय पूज्य जिनमती माताजी का जन्म फाल्गुन शुक्ला १५ सं० १९९० को म्हसवड़ नाम { जिलासातारा, महाराष्ट्र ) में हुआ । म्हसवड़ ग्राम सोलापुर के पास स्थित है । जन्म नाम प्रभावतो था। आपके पिता का नाम पूलचन्द्रजी और माताजी का नाम कस्तूरी देवी था । दुर्भाग्य से प्रभावती के बचपन में हो माता-पिता काल-कवलित हो गए। फलस्वरूप प्रापका लालन-पालन आपके मामा के घर हुआ। सन् १९५५ में आर्थिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने म्हसवड़ में चातुर्मास किया । उस समय चातुर्मास में अनेक बालाएं माताजी से द्रश्यसंग्रह, तत्त्वार्थ सूत्र, कातन्त्र व्याकरण आदि ग्रंथों का अध्ययन करती थी। उस समय बीस वर्षीय बालिका प्रभावतो भी उन अध्ययनरत बालानों में से एक थी। प्रभावती ने बंराग्य से अोतप्रोत होकर सन् १९५५ में ही दीपावली के दिन १०५ ज्ञानमतीजी
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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