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________________ मरणकण्डिका - ५९५ प्रश्न - योगनिरोध में क्या करते हैं ? उत्तर - अघातिया कर्मों को नष्ट करने के लिए सत्य मनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्यवचनयोग, अनुकरण का योग, औद.रि काग, औदारिक निकाययोग और कार्मणकाययोग, इन सात योगों का निग्रह प्रारम्भ करते हैं अर्थात् योगनिरोध में इन योगों के व्यापार को रोकते हैं। समुद्घात कब और क्यों करते हैं ? आयुषा सदृशं यस्य, जायते कर्मणां त्रयम्। स निरस्त-समुद्यातः, शैलेश्यं प्रतिपद्यते ।।२१८४ ॥ अर्थ - जिन सयोगी जिन के नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीय कर्म की स्थिति आयु कर्म के समान ही होती है वे सयोगी जिन समुद्घात किये बिना ही शैलेशी अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं अर्थात् अठारह हजार शीलों के आधिपत्य को प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् चौदहवें अयोग केवली नामक गुणस्थान में आ जाते हैं।।२९८४ ॥ यदायुषोऽधिकं कर्म जायते त्रितयं परम् । समुद्घातं तदाभ्येति, तत्समीकरणाय सः॥२१८५ ।। अर्थ - किन्तु जिनकी आयुस्थिति कम होती है और नाम, गोत्र तथा वेदनीय कर्म की स्थिति अधिक होती है वे सयोगी जिन उन तीन कर्मों की स्थिति आयुकर्म की स्थिति के बराबर करने के लिए समुद्घात क्रिया अवश्य करते हैं।।२१८५॥ य: षण्मासावशेषायुः, केवलज्ञानमश्नुते। अवश्यं स समुद्घातं, याति शेषो विकल्प्यते ॥२१८६ ॥ अर्थ - अनुभूयमान मनुष्यायु छह मास शेष रहने पर जो केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं वे अवश्यमेव समुद्घात करते हैं। शेष सयोगकेवली समुद्घात करते भी हैं और नहीं भी करते। उनके लिए कोई नियम नहीं है।।२१८६॥ अन्तर्मुहूर्त-शेषायुर्यदा भवति संयमी। समुद्धातं तदा धीरो, विधत्ते कर्म-धूतये ॥२१८७ ॥ अर्थ - सयोग केवली की आयु स्थिति जब अन्तर्मुहूर्त मात्र शेष रह जाती है तब वे धीर-वीर संयमी भगवान् कर्मों की स्थिति का हास करने के लिए समुद्घात करते हैं ।।२१८७ ।। समुद्घात क्रिया से कर्मस्थिति का ह्रास होने का हेतु प्रषिकीर्णं यथा वस्त्रं, विशुष्यति न संवृतम् । तथा कर्मापि बोद्धव्यं, कर्म-विध्वंस-कारिभिः ।।२१८८ ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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