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________________ परणकण्डिका - ५६४ क्षपक के उपचार हेतु लाये हुए उपकरणों की व्यवस्था यस्योपकरणं किञ्चित् कृत्वा याञ्चां यदाहृतम् । कृत्वा सम्बोथनं सर्व, तत्तस्यायं विधानतः॥२०५६ ।। अर्थ - क्षपक की समाधि में साधक कुछ पदार्थ तैयार किए एवं कराये जाते हैं और कुछ मांग कर लाये जाते हैं। समाधि हो जाने के बाद जो-जो पदार्थ जिन-जिन से लाये गये हैं वे उन-उन को यह कहकर कि "ये वस्तुएँ अब संघ में उपयोगी नहीं हैं अतः आप वापिस ले जाइए' स्वयं दे देनी चाहिए ।।२०५६ ।। प्रश्न - इस श्लोक में उपकरणों के प्रति क्या आदेश दिया जा रहा है ? उत्तर - समाधि-साधन में सहयोगी जिन उपकरणों या पदार्थों का संग्रह किया जाता है, उनमें कुछ उपकरण तो वसतिका से सम्बद्ध होते हैं जो वहीं कराये जाते हैं और कुछ गृहस्थ से सम्बद्ध होते हैं जो मांग कर लाये जाते हैं। उनमें से (उपयोग में लाये गये) वस्त्र, चटाई एवं लघुशंका आदि के पात्र तो त्याज्य होते हैं अत: उन्हें फेंक देना चाहिए, किन्तु जो बर्तन आदि गृहस्थ से मांग कर लाये गये थे वे नियमानुसार उन्हें वापिस • कर देने चाहिए। श्लोक में यही आदेश दिया गया है। आर्यिका के शव-विसर्जन की विधि प्रसिद्धो यदि संन्यासे, स्थान-रक्षार्यिका यदि । विपन्ना विधिना कार्या, तदानीं शिविकोत्तमा ॥२०५७ ॥ अर्थ - यदि भक्तप्रत्याख्यान मरण करने वाली विख्यात या स्थान की रक्षिका आर्यिका हो तो उसका शव ले जाने के लिए विधिपूर्वक कार्य करके उत्तम शिविका अर्थात् विमान बनाना चाहिए ।।२०५७ ।। संस्तरेण समं बद्ध्वा, मृतकं विधिना दृढम् । विधायोत्थान-रक्षार्थ, ग्रामस्थ विमुखं शिरः ।।२०५८॥ अर्थ - पश्चात् उस शव को विधिपूर्वक संस्तर सहित शिविका में रखकर दृढ़ बाँधना चाहिए, भूतप्रेतादि के वशीभूत हो यदि शव उठकर भागे तो ग्राम की ओर न जावे, इस उद्देश्य से शव का मस्तक या पीठ ग्राम की ओर और मुख निषद्या स्थान की ओर होना चाहिए ।।२०५८ ।। क्षिप्रमादाय गच्छन्ति, वीक्षितेनाध्वना पुरा । निवर्तनमवस्थानं, त्यक्त्वा पूर्वावलोकनम् ।।२०५९॥ अर्थ - उस शिविका को ले जाते समय पूर्व में देखे हुए मार्ग से शीघ्र जाना चाहिए, न मार्ग में रुकना चाहिए और न पीछे मुड़ कर देखना चाहिए, अपितु आगे का मार्ग देखते हुए ही जाना चाहिए ।।२०५९ ।। पुरो गन्तव्यमेकेन, गृहीत-कुश-मुष्टिना। पूर्वावलोकन-स्थान-निवर्तन-विवर्जिना ॥२०६०॥ अर्थ - उस शव-विमान के आगे एक मुट्ठी में कुश अर्थात् डाभ लेकर किसी एक मनुष्य को पूर्व में
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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