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________________ मरणकण्डिका- ५५२ यथाख्यात - विधि प्राप्ता, विशुद्ध-ज्ञान-दर्शनाः । दहन्ति घाति - दारुणि, केचिद्ध्यान- कृशानुना ।।२००९ ।। अर्थ- कोई चरमशरीरी क्षपक मुनिराज यथाख्यात चारित्र की विधि प्राप्त कर शुद्ध सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान से युक्त हो ध्यान रूपी प्रचण्ड अग्नि के द्वारा घातिया रूप दारुण कर्मों को अर्थात् मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अन्तराय को जला देते हैं अर्थात् सर्वज्ञ और वीतरागी बन जाते हैं ।। २००९ ॥ त्यजन्त्याराधका देहं ध्यायन्तो भुवनत्रयम् । द्रव्य - पर्याय - सम्पूर्णं, केवलालोक-लोकितम् ॥२०१० ॥ अर्थ-के द्वारा द्रत्य और पर्यायों से परिपूर्ण इस तीन लोक को जानते हुए वे भव्यात्मा आराधक मुनिराज ध्यान की एकाग्रता पूर्वक अपना शरीर छोड़ देते हैं अर्थात् केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष चले जाते हैं || २०१० ॥ रत्नत्रय - कुठारेण, छित्वा संसार-काननम् । भवन्ति सहसा सिद्धा, नृ-सुरासुर वन्दिताः ॥२०११ ॥ अर्थ- वे आराधक क्षपक मुनिराज रत्नत्रय रूपी कुठार द्वारा संसार रूपी वन को काट कर मनुष्यों, देवेन्द्र और असुरों से वन्दित होते हुए शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं || २०११ ॥ आराध्याराधनामेवमुत्कृष्टां धूत - कल्मषाः । भूत्वा केवलिनः सिद्धाः सन्ति लोकाग्र-वासिनः ।। २०१२ | अर्थ - इस प्रकार उत्कृष्ट आराधना द्वारा कर्मों को नष्ट कर वे आराधक क्षपक मुनिराज केवलज्ञानी होकर लोकाग्रवासी सिद्ध परमेष्ठी हो जाते हैं | २०१२ ॥ मध्यम आराधना का फल अवशेषित - कर्माणः, पवित्रागम मातृकाः । काम - कोपादि - हास्यादि - मिथ्यादर्शन-मोचिनः || २०१३ ॥ सुख-दुःख- सहा वृत्त - ज्ञान दर्शन- संस्थिताः । संवृत्ताः ससमाधाना, शुभध्यान-परायणाः ||२०१४ ॥ विधायाराधना देवी, मध्यमां मुक्त - विग्रहाः । शुद्ध - लेश्यान्विता देवाः, सन्त्यनुत्तर - वासिनः || २०१५ ।। अर्थ - किन्तु जिनके कर्म अभी शेष हैं और जो आगम श्रद्धालु अर्थात् शुद्ध सम्यग्दृष्टि हैं वे क्षपक मुनिराज मिथ्यात्व को नष्ट करके, क्रोधादि कषायों का और हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और काम अर्थात् तीनों वेदों का मथन करके, अष्ट-प्रवचन मातृका अर्थात् पाँच समिति तथा तीन गुप्तियों द्वारा भली प्रकार संवर करके, सुख-दुख में समता रखते हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र में स्थित रहते हैं। संवृत्त
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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