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________________ मरणकण्डिका - ५२५ पवित्र पदार्थ का निर्देश भवन्ति जल्लोषधयो मुनीन्द्रा, धर्मेण देवा: प्रणमन्ति सेन्द्राः। यतस्ततो नास्ति ततः प्रशस्तः, कल्याण-विश्राणन-कल्पवृक्षः ।।१९१२ ।। इति अशुच्यनुप्रेक्षा। अर्थ - जिस कारण से धर्म द्वारा अपवित्र शरीरधारी मनुष्य भी पूज्य हो जाता है, उस कारण से रत्नत्रय धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ प्रशस्त या पवित्र नहीं है। धर्म सम्पूर्ण सुख-परम्परा को देने वाला कल्पवृक्ष है। सब देवों सहित इन्द्र भी धर्ममूर्ति मुनीन्द्रों की वन्दना तथा सेवा करता है। इस पवित्र रत्नत्रय धर्म द्वारा महामुनिराज जल्लौषधि आदि ऋद्धियों से सम्पन्न हो जाते हैं अर्थात् रत्नत्रय धर्म का पालन करने से अनेक मुनिराजों के शरीर का नैसर्गिक मल भी औषधिरूप परिणत हो जाता है। इससे सिद्ध होता है कि इस जगत् में सबसे अधिक पवित्र या प्रशस्त या शुद्ध या पावन या शुचि मात्र रत्नत्रय धर्म ही है ।।१९१२ ।। इस प्रकार अशुचि भावना पूर्ण हुई ॥७॥ आनव भावना संसार-परिभ्रमण का कारण दुःखोदके भवाम्भोधौ, कषायेन्द्रियवाचरैः। आस्रवः कारणं ज्ञेयं, भ्रमतो भव-भागिनः॥१९१३ ॥ अर्थ - यह संसाररूपी समुद्र दुखरूपी जल से परिपूर्ण एवं कषाय और इन्द्रिय रूपी जलचर जीवों से भरा हुआ है। इसमें परिभ्रमण का कारण आस्रव है, ऐसा जानना चाहिए ।।१९१३ ।। प्रश्न - संसार-परिभ्रमण का कारण तो कर्म है, यहाँ आसव को क्यों कहा जा रहा है ? उत्तर - मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और प्रमादादि आम्रव के कारण हैं, आस्रव कर्मबन्ध का कारण है और कर्मोदय का फल जीव के संसार-परिभ्रमण का कारण है अत: यहाँ आस्रव को ही बन्ध का कारण कह दिया गया है। कर्माप्रवति जीवस्य, संसारे विषयादिभिः । सलिलं विविधैः रन्धैः, पोतस्येव पयोनिधौ ।।१९१४॥ अर्थ - जैसे समुद्र में स्थित छिद्रयुक्त नाव या जहाज में जल आता है वैसे ही संसार रूपी समुद्र में स्थित जीवों के स्पर्शादि पंचेन्द्रियों के विषयों द्वारा कर्म आते हैं ॥१९१४ ।। कर्म-सम्बन्धता जाता, राग-द्वेषाक्त-चेतसः। स्नेहाभ्यक्त-शरीरस्य, रजो-राशिरिवानिशम् ॥१९१५॥ अर्थ - जैसे तेल की मालिश सहित शरीर पर सतत धूल या मिट्टी की तह जमती जाती है, वैसे ही राग-द्वेष में आसक्त चित्त वाले जीवों की आत्मा के प्रदेशों पर स्थित विनसोपचयरूप पुद्गल स्कन्ध कर्मरूप परिणत हो जाते हैं ॥१९१५ ।। 236
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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