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________________ मरणकण्डिका - ५२४ - धनकी अशुभता अर्थो मूलमनर्थानां निर्वाण-प्रतिबन्धकः । लोकद्वये महादोषं, दत्ते पुंसां दुरुत्तरम् ॥१९०६ ।। अर्थ धन सब अनर्थों की जड़ है, मोक्षमार्ग का प्रतिबन्धक है और यह धन पुरुषों को दोनों लोकों में महादोष देता है अर्थात् धन प्राप्त कर मनुष्य व्यसनों में फँस जाता है उससे वह इस लोक में निन्दा का पात्र होता है और परलोक में कष्ट प्राप्त करता है । १९०६ ॥ काम पुरुषार्थ की अशुभता निन्द्य-स्थान- भवा: कामा, भीमा लाघव- -हेतवः ! दुःखप्रदा द्वये लोके, स्वल्प- कालाः सुदुर्लभाः ।। १९०७ ॥ अर्थ - ये कामभोग निन्द्यस्थान से उत्पन्न होते हैं, भयंकर हैं, आत्मा को लघु-हीन करने में कारण हैं, दोनों लोकों में दुखदायी हैं, अल्पकालीन हैं और बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते हैं ॥। १९०७ ॥ मांसलिप्ता सिराबद्धा कुथितास्थिदाचिता । सतां कायकुटी कुत्स्या कुथितैर्विविधैर्धृता ॥। १९०८ ॥ अर्थ - यह मानव शरीररूपी झोंपड़ी मांस रूपी मिट्टी से लीपी गई है, शिराओंरूपी छाल से बाँधी गई है, कुत्सित अस्थिरूप पत्तों से छाई हुई है और अनेक घिनावनी एवं अपवित्र वस्तुओं से भरी हुई है अतः सज्जनों द्वारा ग्लानि करने योग्य ही है । १९०८ ॥ निसर्ग-मलिनः कायो, धाव्यमानो जलादिभिः । अङ्गार इव नायाति, स्फुटं शुद्धिं कदाचन ।। १९०९४ अर्थ - जैसे कोयलों को जलादि से धोने पर भी वे श्वेत नहीं होते, वैसे ही स्वभाव से मलिन यह शरीर जलादि से धोने पर भी कभी शुद्धि को प्राप्त नहीं होता है || १९०९ || मेध्यान्यमेध्यानि करोत्यमेध्यं, सद्यः शरीरं सलिलानि नूनम् । अमेध्य - मिश्राणि पुनः शरीरं, न तानि मेध्यं विदधात्यमेध्यम् ॥१९९० ॥ अर्थ - अपवित्र शरीर पवित्रजलादि को शीघ्र ही अपवित्र कर देता है। जल स्वयं अपवित्र नहीं है किन्तु अपवित्र शरीरादि के स्पर्श या मिश्रित होने पर अपवित्र हो जाता है। पवित्र जल शरीर को पवित्र नहीं बना पाता किन्तु अपवित्र शरीर पवित्र जल को अवश्यमेव अपवित्र कर डालता है ॥ १९१० ॥ अमेध्य-निर्मितो देहः, शोध्यमानो जलादिभिः । अमेध्यैर्विविधैः पूर्णो, न कुम्भ इव शुद्ध्यति ॥ १९११ ।। अर्थ - जैसे विविध मल, मूत्र, थूक आदि से भरा हुआ घट बाहर जलादि पवित्र पदार्थों से धोये जाने पर भी शुद्ध नहीं होता, वैसे ही अपवित्र माँस, भज्जा एवं हड्डी आदि से निर्मित यह शरीर जलादि से धोये जाने पर भी शुद्ध नहीं होता । १९११ ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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