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________________ मरणकण्डिका - ५२० सौत हूँ अतः धनदेव मेरा पुत्र है। तुम उसके भी पुत्र हो, अत: तुम मेरे पौत्र हो। यह छह नाते बच्चे के साथ हुए। आगे-(१) वसंततिलका का पति होने से धनदेव मेरा पिता है। (२) तुम मेरे काका हो और धनदेव तुम्हारा भी पिता है, अतः वह मेरा दादा है। (३) तथा वह मेरा पति भी है। (४) उसकी और मेरी माता एक ही है; अत: धनदेव मेरा भाई है। (५) मैं वेश्या वसंततिलका की सौत हूँ और उस वेश्या का वह पुत्र है; अतः मेरा भी पुत्र है। (६) वेश्या मेरी सास है, मैं उसकी पुत्रवधू हूँ और धनदेव वेश्या का पति है; अतः वह मेरा श्वसुर है। ये छह नाते धनदेव के साथ हुए। आगे-(१) मेरे भाई धनदेव की पत्नी होने से वेश्या मेरी भावज है। (२) तेरे मेरे दोनों के धनदेव पिता हैं और वेश्या उनकी माता है; अत: वह मेरी दादी है। (३) धनदेव की और तेरी भी माता होने से वह मेरी भी भाता है। (४) मेरे पति धनदेव की भाषा होने से वह मेरी सौत है। (५) धनदेव मेरी सौत का पुत्र होने से मेरा भी पुत्र कहलाया। उसकी स्त्री होने से वह वेश्या मेरी पुत्रवधू है। (६) मैं धनदेव की स्त्री हूँ और वह उसकी माता है; अतः वह मेरी सास है। इन अठारह नातों को सुनकर वेश्या एवं धनदेव आदि को भी सब बातें ज्ञात हो जाने से जातिस्मरण हो आया और उन्हें वैराग्य हो गया। संसारे जायते यस्मिन्नुपोऽपि खलु किङ्करः । कीदृशी क्रियते तत्र, रति-निन्दा-निधानके ॥१८९३ ।। अर्थ - जिस संसार में निश्चय से राजा भी किंकर हो जाता है, निन्दा के भण्डार स्वरूप इस संसार से प्रेम किस प्रकार किया जाता है ? अर्थात् जो बुद्धिमान और विवेकी हैं वे संसार से प्रेम नहीं करते, वैराग्य धारण कर लेते हैं॥१८९३॥ विदेहाधिपती राजा, तेजो-रूप-कुलाधिकः । जातो वक़-गृहे कीटः, सुभोगः पूर्व-कर्मभिः ।।१८९४ ॥ अर्थ - विदेह देश का राजा सुभोग तेज, रूप एवं कुल से अधिक होते हुए भी अपने द्वारा उपार्जित कर्मोदय से प्रेरित हो अपने ही भवन के विष्ठागृह में स्थित विष्ठा में कीड़ा हुआ अर्थात् जब राजादि श्रेष्ठ पुरुषों की भी ऐसी हीन दशा हो जाती है तब अन्य जीवों की क्या कथा ! ॥१८९४ ।। *सुभोग राजा की कथा * विदेह देशकी मिथिला नगरीमें राजा सुभोग राज्य करता था, उसकी रानी मनोरमा और पुत्र देवरति था, एक दिन मिथिलाके उद्यानमें देवगुरु नामके अवधिज्ञानी आचार्य संघ सहित आये। राजा उनके दर्शनके लिये गया। धर्मोपदेश सुननेके अनंतर राजा ने प्रश्न किया कि मैं आगामी भवमें कौनसी पर्याय धारण करूंगा? मुनि ने कहा - राजन् ! सुनो, पापकर्मों के उदय से आप विष्ठा में कीड़ा होओगे। मुनिराजने मरणकालकी निकटता एवं उसके चिह्न भी बताये । राजा उदास हो महलमें लौट आया । क्रमश: मृत्युके चिह्न जैसे बताये थे वैसे प्रगट होने लगे जिससे मुनिके वचनों पर पूर्ण विश्वास हुआ। उसने पुत्र देवरति को बुलाकर मुनिके मुखसे सुना हुआ आगामी भवका हाल बताकर कहा कि हे पुत्र ! मैं मरणकर विष्ठागृह में पंचरंग का कीड़ा होवूगा । उस निंद्य पर्याय में रहना सर्वथा अनुचित है अतः तुम उस कीड़े को मार देना । मुनिराजके कथनानुसार राजा की निश्चित समयपर मृत्यु हो जाती है और वह विष्ठाका कीड़ा बनता है। देवरति उसको देखकर मारना चाहता है किन्तु
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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