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________________ मरणकण्डिका - ४८६ सभी प्राणियों ने मेरा उपकार किया है अतः सभीजीव मेरे मित्र हैं। ऐसी भावना करना मैत्री भावना है अथवा सभी जीव सदा सुखी रहें, ऐसे भाव होना मैत्री भावना है। असह्य शारीरिक, मानसिक, आगन्तुक एवं स्वाभाविक दुखों से दुखी जीवों को देखकर विचार आना कि अहो ! मिथ्यादर्शन, अविरति और कषायादि से उपार्जित अशुभ कर्मों के उदय से उत्पन्न हुई नाना प्रकार की वेदनाओं को ये जीव विवश हो भोग रहे हैं, इनका दुख कैसे दूर हो ? इस प्रकार के भाव जाग्रत होना कारुण्य भावना है। ___ मुनिजन राग, रोष, भय, लोभ, माया एवं मान आदि से रहित और विनयादि गुण सहित होते हैं। मुनि, गुरु तथा साधर्मी जनों के इस प्रकार के गुणों के चिन्तन से हृदय का आह्लादित हो उठना प्रमोद या मुदिता भावना है तथा सुख में राग एवं दुख में द्वेष न होना अथवा विपरीत चेष्टा करने वाले प्राणियों के प्रति मध्यस्थ भाव रखना माध्यस्थ्य भावना है। दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तपो-वीर्य-निविष्ट-धीः। कृष्टां कुरुते चेष्ट्रां, मनो-वाक्कायकर्मभिः ॥१७८३ ।। अर्थ - मैत्री आदि भावनाओं के बल से वह क्षपक सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र अर्थात् वीतरागता, तप अर्थात् भोजन-पान का त्याग और वीर्य में मन, वचन एवं काय द्वारा सम्यक्त्व आदि की विशिष्टता में अपनी बुद्धि लगाता है अर्थात् अपने परिणामों को अति उज्ज्वल करने की चेष्टा करता है ।।१७८३ ॥ राग-द्वेष-क्रोध-मात्सर्य-मोदाः, येन त्यक्ता निर्जिताक्षेण सर्वे। ध्यानं ध्यातुं योग्यता तस्य साधोः, सामग्रीतो याति कार्यं प्रसिद्धिम् ॥१७८४ ।। इति समता। अर्थ - जिस जितेन्द्रिय साधु ने राग, द्वेष, क्रोध, मात्सर्य एवं हर्ष आदि सभी का त्याग कर दिया है, उस साधु में ध्यान करने की योग्यता आ जाती है और साथ-ही-साथ यदि उसे ध्यान की सामग्री भी मिल जाती है तो तत्काल उसके ध्यानरूप कार्य की सिद्धि भी हो जाती है॥१७८४ ।। इस प्रकार समता नामक अधिकार पूर्ण हुआ॥३६ ।। विशेष - इस अधिकार की अन्तिम पाँच कारिकाएँ ध्यानविषयक प्रतीत होती हैं, जो विचारणीय हैं। ध्यानादि अधिकार शुक्लध्यान में प्रवृत्त होने की प्रेरणा धर्म चतुर्विधं ध्यात्वा, संसारासुख-भीरुकः। शुक्लं चतुर्विधं ध्यानं, ध्यातुं प्रक्रमते यतिः ।।१७८५ ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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