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________________ मरणकण्डिका - ४५७ परस्पर कभी और किसी भी परिस्थिति में दया नहीं करते। कठोर वचन बोलते हुए उनकी ओर दौड़ते हैं कि रे नीच दासीपुत्र ! ठहर जा, कहाँ भागा जाता है ? आज मैं तुझे मारकर ही छोडूंगा। तेरी मृत्यु आ चुकी है। पकड़ो, इसका छेदन करो, भेदन करो, खींचलो, जला दो, खालो, चीर डालो एवं मार डालो इत्यादि अशुभ शब्द ही निरन्तर और सर्वत्र सुनाई देते हैं। इस प्रकार आयु पर्यन्त वे नारकी निरन्तर दुख भोगते रहते हैं। उत्पाट्य बहुशो नेत्रे, जिह्वा संछिद्य मूलतः । यन्नीतो नारकैर्दुखं, दुःखदान-विशारदैः ।।१६५०॥ अर्थ - हे क्षपक ! दुख देने में अत्यधिक निपुण नारकी जीवों द्वारा तेरे नेत्रों को उपाड़ कर और मूलसे जिह्वा उखाड़कर जो दुख दिये गये हैं उनका स्मरण करो ॥१६५०॥ कुम्भी पाके महातापे, क्वथितो यत् समन्ततः । अङ्गार-प्रकरैः पक्वो, यच्छूल-प्रोत-मांसवत् ॥१६५१ ।। अर्थ - हे मुने ! तुम महासन्तापकारी कुम्भीपाक में चारों ओर से अनेक बार पकाये गये हो और शूल में लगे मांस के समान अंगारों के समूह के मध्य पकाये गये हो, उस दुख का स्मरण करो ॥१६५१।। शाकवद्-भृज्यमानो यत्, गाल्यमानो रसेन्द्रवत् । चूर्णवच्चूर्ण्यमानो यद्, वल्लूरमिव कर्तितः ।।१६५२ ।। अर्थ - तुम वहाँ नारकी जीवों द्वारा शाक-सब्जी के समान पूँजे गये हो, गुड़ के रस के समान पकाये गये हो, चूर्ण की तरह चूर्ण-चूर्ण किये गये हो और माँस के सदृश काटे गये हो ॥१६५२ ।। दारित: क्रकचैश्छिन्न;, खड्गैर्विद्धः शरादिभिः। यत्पाटित: परश्वास्ताडितो मुद्गरादिभिः ।।१६५३ ॥ अर्थ - हे क्षपक ! वहाँ तुम करोंत द्वारा विदारित किये गये हो, खड्ग द्वारा छिन्न-अवयव किये गये हो, बाणों द्वारा विद्ध किये गये हो, फरसा आदि के द्वारा उपाड़े गये हो एवं मुद्गर आदि के द्वारा पीटे गये हो ॥१६५३॥ पाशैर्बद्धोऽभितो भिन्नो, द्रुघणैरवशो धनैः। दुर्गमेऽधोमुखीभूतो, यत्क्षिप्तः क्षार-कर्दमे ।।१६५४ ।। अर्थ - हे क्षपक ! तुम पाश द्वारा चारों ओर से कस कर बाँधे गये हो, कुल्हाड़ी द्वारा छिन्न-भिन्न किये गये हो, घन द्वारा कूटे गये हो और पराधीन होकर खारे जल के गहन कीचड़ में नीचे को मुख मस्तक करके गाड़े गये हो॥१६५४॥ यदापन्नः परायत्तो, नारकैः क्रूर-कर्मभिः । लोह-शृङ्गाटके तीक्ष्णे, लोट्यमानोऽतिवेगतः ।।१६५५॥ अर्थ - क्रूर कर्म करने वाले नारकी जीवों द्वारा जब तुम पकड़े जाते थे तब लोहमयी तीक्ष्ण काँटों पर अतिवेग से लोटाये/घसीटे गये हो ॥१६५५ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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