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________________ मरणकण्डिका - २१ संसारभीरु भन्यों को अपनी बुद्धि इस प्रकार रखनी चाहिए इदमेव वचो जैनमनुत्तरमकल्मषम् । निर्ग्रन्थं मोक्ष-वर्मेति, विधेया धिषणा ततः ।।४६ ।। अर्थ - मिथ्या श्रद्धा का बहुत कटुक फल है, ऐसा जान कर भव्य-जीवों को ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए कि ये जिनवचन ही उत्तम हैं, निर्दोष हैं, पापरहित हैं तथा निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग स्वरूप हैं॥४६ ।। प्रश्न - यहाँ 'निर्ग्रन्थ' पद किस अर्थ का वाची है ? उत्तर - जो संसार को रचते हैं और दीर्घ करते हैं उन्हें ग्रन्थ कहते हैं। मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, असंयम, कषाय और तीन अशुभ योगरूप परिणाम ये ग्रन्थ हैं। मिथ्यादर्शन के अभाव में सम्यक्त्व, मिथ्याज्ञान के अभाव में सम्यग्ज्ञान और असंयम, कषाय तथा तीन अशुभ योगों के हटने से सम्यक्चारित्र होता है और इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं, अतः यहाँ 'निर्ग्रन्थ' पद रत्नत्रय का वाची है। सम्यक्त्व के अतिचार शंका कांक्षाचिकित्सान्यदृष्टिशंसन - संस्तवाः । सदाचारैरतीचाराः, सम्यक्त्वस्य निवेदिताः॥४७॥ अर्थ - सदाचारी आचार्यदेव के द्वारा सम्यक्त्व के पाँच अतिचार कहे गये हैं- शंका, कांक्षा, विचिकित्सा. अन्यदृष्टि प्रशंसा और अन्यदृष्टि संस्तव ॥४७ ।। प्रश्न - शंका का अर्थ संशय है और संशय, मिथ्यात्व का एक भेद है। इसके लक्षण में कहा गया है कि "तत्त्व का निर्णय न करने वाले संशयज्ञान का सहचारी जो श्रद्धान है वह सांशयिक मिथ्यात्व है” फिर उसे यहाँ अतिचार में कैसे ग्रहण किया गया है ? उत्तर - यहाँ संशयज्ञान का सहकारी संशय ग्रहण नहीं किया है, अपितु श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम विशेष न होने से, उपदेष्टा के अभाव से अथवा उनमें वचनों की निपुणता न होने से या निर्णयकारी शास्त्रवचन के प्राप्त न होने से या काललब्धि के अभाव से किसी विषय का निर्णय नहीं हो पाना ही यहाँ ग्राह्य है। सम्यग्दृष्टि को भी जब कभी रस्सी में सर्प की और स्थाणु में मनुष्य की शंका हो सकती है किन्तु ऐसी शंका भी सम्यक्त्व का अतिचार नहीं बनेगी। प्रश्न - काक्षा किसे कहते हैं ? संसारी जीवों को गमनागमन, भोजनपान, स्त्री-पुत्र, अलंकार आदि की एवं मोक्षप्राप्ति आदि की अनेक कांक्षाएँ उत्पन्न होती रहती हैं, इनमें कौन सी कांक्षा सम्यक्त्व का अतिचार उत्तर - गृद्धि या आसक्ति को कांक्षा कहते हैं। सम्यक्त्व से, व्रतधारण से, तपश्चरण से, देवपूजा से तथा आहार आदि दान से जो पुण्य हुआ है उससे मुझे उत्तम कुल, रूप, धन, बल, स्त्री, पुत्र और अन्य-अन्य भोगों की प्राप्ति हो, ऐसी कांक्षा करना ही सम्यक्त्व का अतिचार है। प्रश्न - विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टि संस्तव अतिचार क्या हैं ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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