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________________ मरणकण्डिका - ४१४ जाता है और अपने शिकारका वेध करता है। इन्द्रियों में भी भोगे हुए भोगों का स्मरण रूपी पुंख है, आगामी भोगों की चिन्तारूप वेग है, रति इनकी गति है. ये विषय रूपी विष से लिप्त हैं, मनरूपी धनुष द्वारा छोड़े जाते हैं एवं साधुरूपी हिरन का वेध करते हैं अतः इन्हें बाण की उपमा दी गई है। संयमीजन ही इन्द्रियरूपी बाणों का निवारण कर सकते हैं हृषीक-मार्गणास्तीक्ष्णा, साधुभिधृति खेटकैः। ध्यान-सायकमादाय, खण्ड्यन्ते ज्ञान-दृष्टिभिः॥१४७५ ।। अर्थ - धैर्यशाली श्रमण योधा सम्यग्ज्ञानरूपी दृष्टि से देखकर, धैर्य रूपी फलक एवं ध्यानरूपी बाणों द्वारा इन्द्रियरूप तीक्ष्ण बाणों को खण्डित कर देते हैं ॥१४७५ ।। प्रमाद-वदनाः साधु, चरन्तं सङ्ग-कानने। धृत्युपानद्विनिर्मुक्तं, विध्यन्तीन्द्रिय-कण्टकाः ॥१४७६ ।। अर्थ - परिग्रह रूपी घनघोर जंगल में धैर्यरूपी जूतों से रहित विचरण करने वाले साधुओं को प्रमादरूप तीक्ष्ण नोक अर्थात् मुख वाले इन्द्रिय रूपी कॉट बींध देते हैं ।।१४७६ ।। आबद्ध-धृत्युपानत्कमुपयोग-विलोचनम्। कषाय-कण्टका: माधु, न विध्यन्ति मनापि ॥१४७ ।। अर्थ - जिस मुनि ने धैर्य रूपी पादत्राण पहन रखे हैं और जो सम्यग्ज्ञानोपयोग रूप दृष्टि से सम्पन्न है, उस मुनि को वे कषाय-रूपी काँटे किंचित् भी नहीं बींधते/दुख नहीं देते॥१४७७ ।। कषाय-मर्कटा लोलाः, परिग्रह-फलैषिणः । लुम्पन्ति संयमाराम, योगिनो निग्रहं विना ।।१४७८ ॥ अर्थ - कषाय रूपी बन्दर चंचल हैं एवं परिग्रहरूपी फलों में आसक्त हैं, यदि इनका निग्रह नहीं किया तो ये साधुओं के संयमरूपी बगीचे को अवश्य ही नष्ट-भ्रष्ट कर डालते हैं ॥१४७८ ।। त्रिकाल-दोषदा नित्यं, चञ्चला मुनि-पुङ्गवैः। कषाय-मर्कटा गाढं, बध्यन्ते वृत्त-रज्जुभिः ॥१४७९ ।। अर्थ - त्रिकालवर्ती दोषों को उत्पन्न करने वाले तथा सदा चंचल स्वभावी इन कषाय रूपी बन्दरों को श्रेष्ठ मुनिजन चारित्ररूपी रस्सी से दृढ़ बाँध कर रखते हैं ॥१४७९ ।। महोपशम-सत्वाम्यैर्ज्ञानास्त्रैधृति-वर्मितैः । साधु-योधैर्विजीयन्ते, कषायेन्द्रिय-विद्विषः ।।१४८० ॥ अर्थ - महा उपशमरूपी शक्ति, सम्यग्ज्ञानरूपी शस्त्र एवं धैर्यरूपी कवच युक्त साधुरूपी योद्धाओं के द्वारा ही कषाय रूपी शत्रु जीते जा सकते हैं ||१४८० ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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