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________________ 129 - मरणकण्डिका • एवं व्याघ्र भी कभी नहीं करते || १४६९ ॥ - अर्थ संसारी जीवों के कषायरूपी शत्रु जिस महादोष को करते हैं, उस महादोष को शत्रु, सर्प, अग्नि ४१३ कषायों को जीतने का सामान्य कथन शत्रु - सर्पानल - व्याघ्राः, कदाचित्तन्न कुर्वते । यं करोति महादोषं, कषायारिः शरीरिणाम् ।। १४६९ ।। कषायेन्द्रिय- दुष्टाश्चैर्दोष- दुर्गेषु पात्यते । त्यक्त-निर्वेद-खलिनः पुरुषो बलवानपि ॥ १४७ ॥ अर्थ - वैराग्य रूपी लगाम से रहित शक्तिशाली पुरुष को भी ये कषाय और इन्द्रिय रूपी दुष्ट घोड़े दोषरूपी अर्थात् पापरूपी विषम स्थान में गिरा देते हैं । १४७० ॥ - कषायेन्द्रिय- दुष्टामैर्दृढ-निर्वेद-यन्त्रितैः । दोष- दुर्गेषु पात्यन्ते, न सद्ध्यान- कशावरीः ।। १४७१ ।। अर्थ - किन्तु जिनको वैराग्य रूपी दृढ लगाम से नियन्त्रित कर लिया जाता है तथा उत्तम ध्यानरूपी चाबुक से वश कर लिया जाता है वे कषाय एवं इन्द्रिय रूपी दुष्ट भी घोड़े पापरूपी विषम स्थानों में नहीं गिराते ।११४७१ ।। विचित्र - वेदना - दष्टाः, कषायाक्ष - भुजङ्गमैः । नष्ट-ध्यानन-सुखाः सद्यो, मुञ्चन्ते वृत्त - जीवितम् ।। १४७२ । अर्थ - कषाय एवं इन्द्रियरूपी सर्पों से इसे हुए एवं उसकी विषम वेदना से पीड़ित साधु ध्यानरूपी सुख से रहित होकर चारित्ररूपी प्राणों को तत्काल छोड़ देते हैं। अर्थात् वे चारित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं ।। १४७२ || सद्ध्यान-मन्त्र-वैराग्य- भेषजैर्निर्विषी - कृताः । न साधोस्ते क्षमा हर्तुं दीर्घं संयम जीवितम् ॥। १४७३ ॥ अर्थ - किन्तु वे कषाय एवं इन्द्रियरूपी सर्प सम्यग्ध्यान या शुभ ध्यान या धर्मध्यान या शुक्लध्यानरूपी मन्त्र तथा वैराग्यरूपी सिद्ध औषधियों द्वारा निर्विष कर दिये जाते हैं तब साधु के संयमरूपी दीर्घ जीवन को हरण करने में समर्थ नहीं होते || १४७३ ॥ हृषीक मार्गणास्तीक्ष्णाश्चिन्ता पुंखाः स्मृतिस्यदाः । नरं मनो धनुर्मुक्ता, विध्यन्ति सुख - हारिणः || १४७४ ॥ अर्थ - चिन्तारूपी पुंख से युक्त, स्मरणरूपी वेग वाले तथा आत्मीक सुख का हरण करने में समर्थ ये मनरूपी धनुष के द्वारा छोड़े गये इन्द्रिय रूपी तीक्ष्ण बाण नियमतः साधुओं को वेध देते हैं ।। १४७४ || प्रश्न- यहाँ इन्द्रियों को बाण की उपमा क्यों दी गई है ? उत्तर बाण में पुंख होते हैं, वेग होता है, गति होती है, वह विषसे लिप्त होता है, धनुष द्वारा छोड़ा
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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