SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका - ४०४ नेत्र नष्ट कर दिये। उससे सुवेग घायल हो मृत्यु को प्राप्त हुआ। भर्तृमित्र मेघमालाके साथ निर्विघ्नरूपसे अपने नगरमें पहुँच गया। इसप्रकार सुवेग नेत्रेन्द्रिय के विषय में आसक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। गोपासक्ता सुतं हत्वा, नासिक्य-नगरे मृता! पापा गृहपतेर्भार्या, दुहित्रा मारिता सती॥१४२८ ।। अर्थ - नासिक्य नगर में गृहपति सागरदत्त की पत्नी नागदत्ता स्पर्शन इन्द्रिय के कारण एक ग्वाले पर आसक्त थी, उस पापिनी ने अपने पुत्र को मारा, इस कृत्य से कुपित हो उसकी पुत्री श्रीषेणा ने अपनी माँ को मार दिया ॥१४२८ ।। दुःख-दान-निपुणा निषेविताः, स्पर्श-रूप-रस-गन्ध-निस्वनाः। दुर्जना इव विमोय मानवं, योजयन्ति कुपथे प्रथीयसि ॥१४२९ ॥ अर्थ - जैसे दुर्जनों की संगति करने वाले को वे दुर्जन लोग मोहित करके सप्त व्यसनरूपी महान् खोटे मार्ग में फंसा देते हैं, वैसे ही दुख देने में निपुण ऐसे सेवन किये गये ये स्पर्श, रस, गन्ध, रूप एवं शब्द मनुष्य को कुगतिरूपी भयंकर मार्ग में लगा देते हैं॥१४२९ ।। अग्निनेव हृदयं प्रदयते, मुहयते नु विषयैर्विशक्तितः। तत्कथं विषय-वैरिणो जनाः, पोषयन्ति भुजगानियाधमान् ॥१४३०॥ _इति इन्द्रिय-विशेष-दोषाः । अर्थ - शक्तिहीन विषयासक्त पुरुषों का हृदय विषयों द्वारा मोहित होता हुआ अग्नि से जलाये गये के सदृश अतिशय रूप से जलता रहता है। ऐसे सर्प सदृश अधम विषयरूपी वैरियों को मनुष्य कैसे पुष्ट कर सकते है ? अपितु कदापि नहीं कर सकते ॥१४३०॥ इस प्रकार इन्द्रियों के विशेष दोषों का कथन पूर्ण हुआ। ___ कोपजन्य दोष अरत्यर्चिः करालेन, श्यामली-कृत-विग्रहम् । प्रस्विधति तुषारेऽपि, तापितः कोप-वह्निना ।।१४३१ ।। अर्थ - क्रोधरूपी अग्नि से तप्नायमान मनुष्य अरतिरूपी अग्नि से संतप्त होता है, उसके शरीर का रंग काला हो जाता है, क्रोधाग्नि से तपाये जाने से ठण्ड में भी उसे पसीना आने लगता है ।।१४३१ ।। अभाष्यां भाषते भाषामकृतां कुरुते क्रियाम् । कोप-व्याकुलितो जीवो, ग्रहार्तं इस कम्पते ।।१४३२ ॥ ___ अर्थ - क्रोध से व्याकुलित हुआ मनुष्य अयोग्य भाषा बोलने लगता है, अयोग्य क्रियाएँ करने लगता है तथा ग्रह से पीड़ित हुए के सदृश काँपने लगता है॥१४३२ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy