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________________ परमिका - ९७ अर्थ - (अन्य आचार्य के द्वारा) सूत्र से समीचीन अर्थ दिखाये जाने पर भी जब वह श्रद्धा नहीं करता तब वह (सम्यग्दृष्टि जीव) उसी समय से मिथ्यादृष्टि हो जाता है ।।३६ ।। प्रश्न - सूत्र द्वारा दर्शित अर्थ पर श्रद्धा न करने से वह उसी क्षण मिथ्यादृष्टि क्यों हो जाता है जबकि तत्त्व का अर्थ तो वही है जो पूर्व में था? उत्तर - तत्त्व का जो विपरीत अर्थ पूर्व में था वहीं वर्तमान में है किन्तु पूर्व में यह तत्त्व सर्वज्ञ प्रतिपादित है' इस श्रद्धा के बल पर वह आज्ञा सम्यग्दृष्टि था। अब दर्शित सूत्रार्थ अवधारण न करने से सर्वज्ञ की आज्ञा की अवहेलना कर गुरु मात्र का पक्षधर हो गया अत: तत्काल मिथ्यादृष्टि हो गया । ___ जो गणधरादि द्वारा रचित है, वहीं सूत्र है ज्ञेयं प्रत्येक-बुद्धेन, गणेशेन निवेदितम् । श्रुतकेवलिना सूत्रमभिन्न-दशपूर्विणा ।।३७ ।। अर्थ - जो गणधर द्वारा, प्रत्येकबुद्ध मुनिराज द्वारा, श्रुतकेवली द्वारा और अभिन्नदशपूर्वियों द्वारा कहा हुआ है उसे ही 'सूत्र' जानना चाहिए ।।३७ ।। प्रश्न - गणधर, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्नदशपूर्वी किसे कहते हैं? उत्तर - जो बारह गणों को धारण करते हैं, जिनेन्द्रोपदिष्ट अर्थ को ग्रन्थ रूप में गूंथते हैं और सात ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं वे गणधर होते हैं । जो श्रुतज्ञानावरण कर्म प्रकृति के क्षयोपशम विशेष से परोपदेश के बिना ही ज्ञानातिशय को प्राप्त होते हुए वैराग्य सम्पन्न भी होते हैं उन्हें प्रत्येकबुद्ध कहते हैं, जो समस्त श्रुत के धारी होते हैं वे श्रुतकेवली हैं और जो पूर्वज्ञान प्राप्त करने में संलग्न रहते हैं, विद्यानुवाद नामक दसवें पूर्व का अध्ययन करते समय विद्याओं की अधिष्ठात्री देवियों के उपस्थित होने, अपनी शक्ति प्रदर्शित करने और 'हमें आप कार्य बताइये ऐसा कहने पर भी उनके प्रलोभन में न फँस कर अचलचित्त रहते हैं तथा जिनका ज्ञान-वैराग्य कभी खण्डित नहीं होता, उन्हें अभिन्नदशपूर्वी कहते हैं। इनमें से किसी भी एक के द्वारा रचा गया जो आगम है, उसे सूत्र कहते हैं। निर्दोष चारित्रधारी मुनिश्रेष्ठों के वचन प्रमाण हैं प्राप्तार्थश्चारुचारित्र:, शंक्यते न महामनाः। शंक्यते मन्द-धर्माऽसौ, कुर्वाणस्तत्त्व-देशनाम् ॥३८॥ अर्थ - जिन्होंने आगम का अर्थ भली प्रकार ग्रहण किया है तथा जो दृढ़ एवं निर्दोष चारित्र युक्त हैं उनके वचनों में भव्य जीवों को शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि उनके वचन प्रामाणिक होते हैं), किन्तु जो मन्दचारित्री धर्मदेशना करते हैं उनके वचनों की प्रामाणिकता भजनीय है। अर्थात् वे वचन आगमप्रमाण हैं तो प्रामाणिक हैं और यदि आगमविरुद्ध हैं तो वे प्रामाणिक नहीं हैं ।।३८ ।। प्रश्न - साधुजनों में किसके वचन प्रामाणिक हैं ? उत्तर - गणधर, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्नदशपूर्वी मुनिराजों द्वारा कथित वचन तो प्रामाणिक
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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